Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याणमंदिरस्तोत्र ][ ४५
कर्मलेप रहित छो. आप अज्ञानी छद्मस्थ जीवोने संबोधन करो छो अने
आपमां सदैव केवळज्ञान स्फुरायमान रहे छे. ३०.
[दुर्गतःदरिद्र,
कठिनताथी जणाय तेवा. अक्षरप्रकृतिअक्षर स्वभाववाळा, मोक्षस्वरूप.
अलिपि :लिपिथी लखी शकाता नथी. कर्मलेप रहित. अज्ञानवति :
अज्ञानी होवा छतां पण, छद्मस्थ अज्ञानी जीवोने संबोधन करनार.]
प्राग्भारसम्भृतनभांसि रजांसि रोषा
दुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि
छायापि तैस्तव न नाथ हता हताशो,
ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा
।।३१।।
व्याप्या जेणे अति अति महा भारद्वारा नभोने,
उडाडी’ती शठ कमठडे रोषथी जे रजोने;
तेथी छाया पण तमतणी ना हणाणी जिनेश!
दुरात्मा एहज रज थकी ते ग्रसायो हताश. ३१.
अर्थ :हे प्रभुवर! दुष्ट कमठे क्रोधथी समस्त आकाशमां
व्यापनारी जे धूळ उडाडी हती ते रजथी आपना शरीरनी छाया पण
हणाणी नहोती, आपनो पराजय थवानी वात तो दूर ज रही. ऊल्टुं
हताश बनेल दुष्ट ते कमठ ज ते रजोथी (पापकर्मोथी) घेराई गयो. ३१.
यद्गर्जदूर्जितघनौघमदभ्रभीमं,
भ्रश्यत्तडिन्मुसलमांसलघोरधारम्
दैस्येन मुक्तमथ दुस्तरवारि दध्रे,
तेनैव तस्य जिन दुस्तर वारिकृत्यम्
।।३२।।
ज्यां गर्जंता प्रबळ घनना ओघथी भ्रम भीम;
विद्युत् त्रुट मुसल सम ज्यां घोर धारा असीम;
दैत्ये एवुं ज दुस्तरवारि अरे! मुक्त कीधुं,
तेनुं तेथी ज दुस्तरवारि थयुं कार्य सीधुं. ३२.