५२ ][ पंचस्तोत्र
ते हे जिनेन्द्र! जननेत्र ‘कुमुदचन्द्र’
ह्यां भोगवी स्वरग संपदवृंद चंग;
निःशेष कर्ममल संचय साव वामे,
ते शीघ्र तेह ‘भगवान्’! शिवधाम पामे. (युग्म) ४४.
अर्थ : — हे जिनपति, हे विभुवर, हे जननयन कुमुदचन्द्र
अर्थात् प्राणीओना नेत्र – कुमुदोने प्रकाशित करनार चन्द्र! (आ पद
द्वारा श्री सिद्धसेन दिवाकराचार्ये ‘कुमुदचन्द्र’ ए पोताना गुरुए आपेलुं
दीक्षानाम पण बताव्युं छे.) जे भव्य जीव आपना प्रतिमाना मुखकमल
तरफ एकीटशे जोईने, सघन अने रोमांचरूप वस्त्रोथी पोताना शरीरना
अंग ढांकीने, एकाग्र ध्यानयुक्त बुद्धि द्वारा आपनी स्तुति करे छे,
तेओ स्वर्गलोकना अनेक प्रकारना मनोहर सुखो भोगवीने तथा
आत्मामांथी भावकर्मरूपी मळ दूर करीने अति शीघ्रपणे मोक्षसुखनी
प्राप्ति करे छे. ४३
– ४४.
ए प्रमाणे श्रीकल्याणमंदिर स्तोत्रनी पं. श्रेयांसकुमारजी शास्त्रीए
करेल भाषा टीकानो गुजराती अनुवाद संपूर्ण थयो.