Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalyan-Kalpdrum-Ekibhav Stotra.

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श्रीमद् वादिराजआचार्यविनिर्मित
कल्याणकल्पद्रुमएकीभाव स्तोत्र
(मन्दाकन्ता)
एकीभावं गत इव मया यः स्वयं कर्मबन्धो
घोरं दुःखं भवभवगतो दुर्निवारः करोति
तस्याप्यस्य त्वयि जिनरवे भक्तिरुन्मुक्तये चेज
जेतुं शक्यो भवति न तया कोऽपरस्तापहेतुः ।।।।
जो अति एकीभाव भयो मानो अनिवारी,
सो मुज कर्म प्रबध करत भवभव दुःख भारी;
ताहि तिहारी भक्ति जगतरवि जो निरवारै,
तो अब और कलेश कौन सो नाहिं विदारै. १.
अर्थ :हे जिनसूर्य! आ जे कर्मबंध मारी साथे स्वयं एकपणाने
प्राप्त थयो होय तेवो थई रह्यो छे, ने दुर्निवार छे अने जे प्रत्येक भवमां
साथे जईने घोर दुःखो आपे छे तेने पण जो आपनी भक्ति दूर करी
शके छे तो बीजुं एवुं कष्टनुं कर्युं कारण छे के जेने ते भक्ति जीती न
शके? अर्थात् कोई पण नथी
जिनभक्तिना प्रसादथी बधा कष्टो अने
संतापोनुं सहज ज निवारण थई जाय छे. १.
ज्योतीरूपं दुरितनिवहध्वान्तविध्वंसहेतुं
त्वामेवाहुर्जिनवर चिरं तत्त्वविद्याभियुक्ताः
चेतोवासे भवसि च मम स्फारमुद्भासमानम्-
तस्मिन्नंहः कथमिव तमो वस्तुतो वस्तुमीष्टे ।।।।