Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याण-कल्पद्रुम-एकीभाव स्तोत्र ][ ५५
ध्यानद्वारं मम रुचिकरं स्वान्तगेहं प्रविष्टस्
तत् किं चित्रं जिन वपुरिदं यत्सुवर्णीकरोषि ।।।।
दिवितैं आवनहार भये भविभाग उदयबल,
पहलेही सुर आय कनकमय कीय महीतल;
मनगृहध्यानदुवार आय निवसो जगनामी,
जो सुवरन तन करो कौन यह अचरज स्वामी. ४.
अर्थ :हे जिनदेव! भव्यजीवोना पुण्यप्रभावथी देवलोकमांथी
अहीं आपना पधारवाना (छ महिना) अगाउथी ज देवो द्वारा करवामां
आवती रत्नो आदिनी वृष्टिथी आ भूमंडळ सुवर्णमय बन्युं हतुं. हवे
ज्यारे आप ध्यानरूपी द्वारवाळा मारा रुचिकर अंतःकरणमां प्रवेश पाम्या
छो तो हे देव! आप मारा आ (कोढना रोगथी घेरायेला) शरीरने
सुवर्णमय बनावी दो एमां कई आश्चर्यनी वात छे? कोई पण आश्चर्यनी
वात नथी. ४.
लोकस्यैकस्त्वमसि भगवन् निर्निमित्तेन वन्धुसू
त्वय्येवासौ सकलविषया शक्तिरप्रत्यनीका
भक्तिस्फीतां चिरमधिवसन्मामिकां चित्तशय्यां
मय्युत्पन्नं कथमिव ततः क्लेशयूथं सहेथाः ।।।।
प्रभु सब जगके विना हेतु बांधव उपकारी,
निरावरन सर्वज्ञ शक्ति जिनराज तिहारी;
भक्तिरचित ममचित्त सेज नित वास करोगे,
मेरे दुःखसंताप देख किम धीर धरोगे. ५.
अर्थ :हे भगवान्! आप लोकना अद्वितीय कारण विशेष
विनानां बंधु छो अने आपमां ज सर्व पदार्थोने जाणनारी जेने कोई
प्रतिपक्षी नथी एवी शक्ति छे, आप मारी भक्तिथी समृद्ध एवी
चित्तरूपी शय्यामां चिरकाळथी निवास करो छो तेथी मारामां उत्पन्न थता