Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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५६ ][ पंचस्तोत्र
के थनारा दुःखसमूहने आप केवी रीते सहन करी शको? सहन करी
शकता नथी. ५.
जन्माटव्यां कथमपि मया देव दीर्घं भ्रमित्वा
प्राप्तैयेयं तव नयकथास्फारपियूषवापी
तस्यां मध्ये हिमकरहिमव्यूहशीते नितान्तं
निर्मग्नं मां न जहति कथं दुःखदावोपतापः ।।।।
भववनमें चिरकाल भ्रम्यो कछु कहिय न जोई,
तुम धुतिकथापियूषवापिका भागन पाई;
शशि तुषार घनसार हार शीतल नहिं जा सम,
करत न्हौन तामाहिं कयो न भवताप बुझै मम. ६.
अर्थ :हे जिनदेव! भववनमां दीर्घकाळपर्यंत भ्रमण कर्यां पछी
आपनी आ नयकथावार्तारूप उदार अमृतरसथी पूर्ण विस्तीर्ण वाव कोई
पण रीतेमहा कष्टथीमने प्राप्त थई छे. ते चन्द्रमा अने हिमपूंज समान
शीतळ वायमां हुं पूर्णपणे निमग्न थई गयो छुं, एवी स्थितिमां दुःखरूपी
दावानळनो आताप मने केम नहि छोडे? छोडशे ज, मारा उपर दुःखनो
कोई प्रभाव रही शकशे नहि. ६.
पादन्यासादपि च पुनतो यात्रया ते त्रिलोकीं
हेमाभासो भवति सुरभिः श्रीनिवासश्व पद्मः
सर्वाङ्गेण स्पृशति भगवंस्त्वय्यशेषं मनो मे
श्रेयः किं तत् स्वयमहरहर्यन्न मामभ्युपैति ।।।।
श्री विहार परिवाह होत शुचिरूप सकल जग,
कमलकनक आभाव सुरभि श्रीवास धरत पग;
मेरो मन सर्वंग, परस प्रभुको सुख पावै,
अब सो कौन कल्यान जो न दिन दिन ढिग आवै. ७.