Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याण-कल्पद्रुम-एकीभाव स्तोत्र ][ ६३
बुद्धि जो के मिथ्या ज छे तो पण ते मने अचळ तृप्ति आपे छे अने
ते योग्य छे कारण के आपना प्रसादथी दोषी मनुष्य पण अभिमत फळनी
प्राप्ति करी ले छे. १७.
मिथ्यावादं मलमपनुदन् सप्तभंगीतरङ्गै
र्वागम्भोदिर्भुवनमखिलं देव पर्यति यस्ते
तस्यावृतिं सपदि विबुधाश्चेतसैवाचलेन
व्यातन्वन्तः सुचिरममृतासे वयातृप्नुवन्मि ।।१८।।
वचन जलधि तुम देव सकल त्रिभुवनमें व्यापै,
भंग तरंगिनि विकथवादमल मलिन उथापै;
मनसुमेरुसो मथै ताहि जे सम्यग्ज्ञानी
परमामृत सों तृपत होहिं ते चिरलों प्रानी. १८.
अर्थ :हे अर्हन् भगवन्! आपनो जे वचनसमुद्र छेदिव्य -
ध्वनि द्वारा मुखारित थयेलो श्रुतसागर छेते पोतानी सप्तभंगात्मक
तरंगोद्वारा मिथ्यावादरूप मळनेसर्वथा एकान्तमय वस्तुतत्त्वना कथन
विकारनेदूर करतो थको आखाय विश्वमां फेलायेल छे. जे विबुधजन छे
तेओ शीघ्र ज पोताना एकाग्र चित्त द्वारा तेनुं मंथन करीने जे अमृत
मोक्षतत्त्वने प्राप्त करे छे तेनी भरपूर सेवाथी चिरकाळ सुधी तृप्त अने
सुखी बनी रहे छे. १८.
आहार्य्येभ्यः स्पृहयति परं यः स्वभावादहृद्यः
शस्त्रग्राही भवति सततं वैरिणा यश्च शक्यः
सर्वाङ्गेषु त्वमसि सुभगस्त्वं न शक्यः परेषां
तत्किं भूषावसनकुसुमैः किं च शस्त्रैरुदस्रैः ।।१९।।
जो कुदेव छबिहीन वसन भूषण अभिलाखै;
वैरी सों भयभीत होय सो आयुध राखै;
तुम सुंदर सर्वांग शत्रु समरथ नहिं कोई,
भूषण वसन गदादि ग्रहन काहेको होई. १९.