Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६४ ][ पंचस्तोत्र
अर्थ :जे स्वभावथी अमनोज्ञ होय ते शृंगारोनी इच्छा करे छे
अने जे शत्रु द्वारा जीताई जवा योग्य होय ते भयथी सदा शस्त्रोनुं ग्रहण
करे छे. भगवान्! आप तो सर्वांग सुंदर छो, बीजाओ द्वारा आप अजेय
छो; तो पछी (स्वभावथी ज सुंदर होवाने लीधे) वस्त्रो आभूषणो अने
पुष्पोनुं आपने शुं प्रयोजन होय? तथा शत्रुओथी अजेय होवाना कारणे
शस्त्रो
अशस्त्रोथी पण शुं प्रयोजन होय १९.
इन्द्रः सेवां तव सुकुरुतां किं तया श्लाघनं ते
तस्यैवेयं भवलयकारी श्लाध्यतेमातनोति
त्वं निस्तारी जननजलधेः सिद्धिकान्तापतिस्त्वं
त्वं लोकानां प्रभुरिति तव श्लाध्यते स्तोत्रमित्थम् ।।२०।।
सुरपति सेवा करै कहा प्रभु प्रभुता तेरी,
सो सलाधना लहै मिटै जगसों जग केरी;
तुम भवजलधि जिहाज तोहि शिवकंत उचरिये,
तुहीं जगतजनपाल नाथथुतिकी थुति करीये. २०.
अर्थ :हे तीर्थंकर भगवान! इन्द्र आपनी जे सारी रीते
सेवा पूजाभक्ति करे छे तेनाथी आपनो शुं महिमा अथवा प्रशंसा
छे? कांई पण नहि. आ सेवा तो ते इन्द्रना ज महिमा प्रशंसानुं
कारण बने छे; केम के ते तेना भवभ्रमणनो नाश करे छे.
वास्तवमां आप संसार-समुद्रथी पार करनार छो, सिद्धिकान्ताना स्वामी
छो अने त्रणे लोकना स्वामी छो आ जातनुं स्तोत्र आपनी प्रशंसानुं
द्योतक छे. २०.
वृत्तिर्वाचामपरसदृशी न त्वमन्येन तुल्यः
स्तुत्युद्गाराः कथमिव ततः त्वय्यमी नः क्रमन्ते
भैवं भूवंस्तदपि भगवन् भक्तिपीयूष पुष्टाम्
ते भव्यानामभिमतफलाः पारिजाता भवन्ति ।।२१।।