Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६६ ][ पंचस्तोत्र
देव स्तोतुं त्रिदिवगणिकामण्डलीगीतकीर्ति
तोतूर्ति त्वां सकलविषयज्ञानमूर्तिं जनो यः
तस्य क्षेमं न पदमटतो जातु जोहूर्ति पन्थासू
तत्त्वग्रन्थस्मरणविषये नैष भोमूर्ति मर्त्यः ।।२३।।
सुरतिय गावैं सुयश सर्वगति ज्ञानस्वरूपी,
जो तुमको थिर होहिं नमैं भविआनंदरूपी;
ताहि छेमपुर चलनवाट बाकी नहि हो हैं,
श्रुतके सुमरनमांहि सो न कबहू नर मोहैं. २३.
अर्थ :हे जिनदेव! आप एवा ज्ञाननी मूर्ति छो के जेणे सकळ
पदार्थोने पोतानो विषय कर्यो छे अने स्वर्गोनी अप्सराओए मळीने
आपना खूब यशोगान कर्या छे. आपनी स्तुति करवा माटे जे उत्सुक अने
उद्यत थाय छे ते क्षेमरूप मोक्ष तरफ गमन करनार मनुष्योनो मार्ग कदी
पण कुटिल अने जटिल बनतो नथी अने ते तत्त्वग्रन्थोना स्मरणमां कदी
मोह पामता नथी
तत्त्वसमूहना विषयमां तेमने कदी कोई संदेह उत्पन्न
थतो नथी. २३.
चित्त कुर्वन्निरवधिसुखज्ञानद्रद्रग्दवीर्यरूपं
देव ! त्वां यः समयनियमादादरेण स्तवीति
श्रेयोमार्गं स खलु सुकृती तावता पूरयित्वा
कल्याणानां भवति विषयः पञ्चधा पञ्चितानाम्
।।२४।।
अतुल चतुष्टयरूप तुमैं जो चित्तमैं धारै,
आदरसों तिहुंकालमाहिं जगथुति विस्तारे;
सो सुक्रत शिवपंथ भक्तिरचना कर पूरै!
पंचकल्यानक ॠद्धिपाय निहचै दुःख चूरै. २४.
अर्थ :हे तीर्थंकर जिनदेव! जे कोई भव्यप्राणी आपने