Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 67 of 105
PDF/HTML Page 75 of 113

 

background image
कल्याण-कल्पद्रुम-एकीभाव स्तोत्र ][ ६७
अनंतसुख, अनंतज्ञान, अनंत दर्शन अने अनंतवीर्यरूप हृदयमां धारण
करतो थको
ध्यातो थको निश्चित समयना नियमपूर्वक नित्य आदर सहित
आपनी स्तुति करे छे ते पुण्यवान पुरुष एटला मात्रथी ज कल्याणमार्गने
पूर्ण करीने पांच प्रकारना विस्तृत कल्याणकोनो पात्र बने छे. २४.
भक्तिप्रह्वमहेन्द्रपूजितपद त्वत्कीर्तने न क्षमाः
सूक्ष्मज्ञानद्रशोऽपि संयमभृतः के हन्त मन्दा वयम्
अस्माभिः स्तवनच्छलेन तु परस्त्वय्यादरस्तन्यते
स्वात्माधीन
सुखैषिणां स खलु नः कल्याणकल्पद्रुमः ।।२५।।
अहो जगतपति पूज्य अवधिज्ञानी मुनि हारै,
तुम गुनकीर्तनमाहिं कौन हम मंद विचारै;
थुति छलसों तुम विषै देव आदर विस्तारे!
शिवमुख पूरनहार कल्पतरु यही हमारे. २५.
अर्थ :हे जिनेन्द्र भगवान! भक्तिथी नम्रीभूत थईने महान
देवेन्द्र आपना चरणोने पूजे छे, सूक्ष्म ज्ञानदर्शनना धारक अने संयमथी
भरपूर (स्वामी समन्तभद्र जेवा स्तुतिकार) मुनिराज पण आपनुं कीर्तन
करवामां समर्थ नथी; तो अमारा जेवा मन्दबुद्धिवाळाओनी तो वात ज
शी करवी? अमे तो स्तवनना बहाने आपना प्रत्ये मारा उच्च आदरनो
विस्तार कर्यो छे. आ स्तवनरूप उच्च आदर अमारा जेवा स्वात्माधीन
सुखना इच्छकोने माटे ‘कल्याण
कल्पद्रुम’ छेकल्याण प्रदान करनार
कल्पवृक्ष छे. २५.
प्रशस्ति
वादिराजमनु शाब्दिकलोको
वादिराजमनु तार्किकसिंहः
वादिराजमनु काव्यकृतस्ते
वादिराजमनु भव्य सहायः ।।।।