Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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७० ][ पंचस्तोत्र
तत्याज शक्रः शकनाभिमानं,
नाहं त्यजामि स्तवनानुबंधम्
स्वल्पेन बोधेन ततोऽधिकार्थं,
वातायनेनेव निरूपयामि ।।।।
अर्थ :हे त्रिलोकनाथ! इन्द्रे आपनी स्तुति करवानी शक्तिनुं
अभिमान छोडी दीधुं हतुं परंतु हुं आपनी स्तुति करवानो प्रयत्न छोडतो
नथी. जेम नानकडा वाबारामांथी डोकाईने तेना करता अनेकगणा मोटा
पदार्थोनुं वर्णन करवामां आवे छे तेवी ज रीते हुं (मारा) थोडाक ज्ञान
द्वारा घणा महान पदार्थनुं वर्णन करुं छुं. ३.
त्व विश्वद्रश्व सकलैरदृश्यो,
विद्वानशेषं निखिलैरवेद्यः
वक्तुं कियान्कीदृशमित्यशक्यः,
स्तुतिस्ततोऽशक्तिकथा तवास्तु ।।।।
अर्थ :हे सर्वज्ञदेव! आप सकळ विश्वने देखो छो परंतु आप
बधाथी अद्रश्य रहो छो. आप पूर्णज्ञाता छो परंतु आपने कोई जाणतुं
नथी. आप केवडा अने केवा छो ए कहेवाने कोई समर्थ नथी माटे आपनी
स्तुति न करी शकवारूप जे कथा छे ते ज आपनी स्तुति छे. ४.
व्यापीडितं बालमिवात्मदोषै
रुल्लाघतां लोकमवापिपस्त्वं
हिताहितान्वेषणमांद्यभाजः
सर्वस्य जंतोरसि बालवैद्यः ।।।।
अर्थ :हे जिनेश्वर! जेम बाळको अणसमजणा होवाने कारणे
वातादि दोषोथी पीडाता होय छे ते समये बाळरोगोना निष्णात वैद्य तेमने
निरोग करे छे तेवी ज रीते संसारी जीवो पोताना आत्मानी भ्रान्तिरूप
रोगथी अत्यंत दुःखी थई रह्या छे तेमने आपे मोक्षमार्गरूपी नीरोगतानी