आकाश तथा पृथ्वीनी विशाळता पण तेमना सुधी ज सीमित छे परंतु
आपनी धीरज, उन्नत प्रकृति अने उदारता समस्त लोकालोकमां व्यापी
रही छे. ८.
आपे अनवस्था (परिवर्तनशीलता) बतावीने पुनरागमननो अभाव कह्यो
छे. आप प्रत्यक्ष फळ छोडीने अद्रष्ट फळ चाहो छो; आ प्रमाणे आप
विरुद्ध आचरण सहित होवा छतां पण विरुद्ध आचरण रहित छो, ए
महान् आश्चर्य छे. ९.
द्रव्यद्रष्टिथी नित्य अने पर्यायद्रष्टिथी अनित्य धर्मात्मक छे. संसारी जीवोनी
अपेक्षाए पुनरागमन छे परंतु मुक्त जीवोनी अपेक्षाए पुनरागमन नथी
केम के संसारी जीव राग द्वेष, मोहभावोने वश थवाना कारणे जुदी जुदी
योनिओमां परिभ्रमण कर्या करे छे परंतु मुक्त जीवोमां कर्मकलंकनो अभाव
थई गयो छे तेथी तेमने पुनरागमन थतुं नथी. द्रष्टफळ छोडीने अद्रष्टफळ