Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषापहार स्तोत्र ][ ७३
चाहवानो अभिप्राय ए छे के आपे इन्द्रियजनित तुच्छ सुख छोडीने
अतीन्द्रियजन्य परमसुख मोक्षनी चाह करी. आ प्रमाणे अर्थ करवाथी
वास्तवमां कोई पण विरोध नथी. ९.
स्मरः सुदग्धो भवतैव तस्मि
न्नुद्धलितात्मा यदि नाम शम्भुः
अशेत वृन्दोपहतोऽपि विष्णुः
किं गृह्यते येन भवानजागः ।।१०।।
अर्थ :हे अनंतवीर्यना धारक! लोकविजयी कामने वास्तवमां
आपे ज भस्म कर्यो छे, बीजा कोईए नहि. जो महादेवने कामने भस्म
करवाने कारणे ईश्वर कहो तो ते बराबर नथी कारण के ते पण पाछळथी
कामथी पीडित थई गया हता. विष्णु पण लक्ष्मीनी साथे शयन करवाने
कारणे अनेक आकुळताओथी पीडित छे परंतु आप सदैव आत्मामां जागृत
रहेवाने कारणे कामनिद्रामां अचेत थया नहि अर्थात् हरिहरादिक बधा देव
बाह्य परिग्रहथी लिप्त, निद्रा आदि अढार दोष सहित तथा कामद्वारा
पीडित छे अने आप अढार दोषरहित बाह्य अंतरंग बधा परिग्रहोथी
रहित, निराकुळ अने साचा कामविजेता छो. १०.
स नीरजीस्यादपरोऽधवान्वा,
तदोषकीर्त्यैव न ते गुणित्वम्
स्वतोऽम्बुराशेर्महिमा न देव !
स्तोकापवादेन जलाशयस्य ।।११।।
अर्थ :हे जिनदेव! आपनाथी भिन्न ते हरिहरादि देव निर्दोष
होय के सदोष होय, तेमना दोषोनुं वर्णन करवा मात्रथी ज आपनुं
गुणीपणुं नथी. जेम वाव, कूवो, तळाव आदिनी निंदा करवाथी समुद्रनो
महिमा होय एम बाबत नथी परंतु समुद्रनो महिमा स्वभावथी ज होय
छे तेवी ज रीते अनंत ज्ञानादि अपरिमित गुणोना स्वामी होवाथी आपनो
सर्वोपरि महिमा स्वभावथी ज छे. ११.