Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषापहार स्तोत्र ][ ७५
अर्थ :हे भगवान! आश्चर्यनी वात छे के संसारी जीवो विष
दूर करनार मणि, औषध, मंत्र, रसायण अने कल्पवृक्ष आदिनी प्राप्ति
माटे अहीं तहीं भटके छे परंतु आपनुं स्मरण करता नथी. जो के मणि
आदि बधा शब्दो आपना पवित्र नामना ज पर्यायवाची छे. १४.
चित्ते न किञ्चित्कृतवानसि त्वं
देवःकृतश्चेतसि येन सर्वम्
हस्ते कृतं तेन जगद्विचित्रं
सुखेन जीवत्यपि चित्तबाह्यः ।।१५।।
अर्थ :हे त्रिभुवनाराध्य! आपना हृदयमां (वीतराग होवाथी
रागद्वेषादि) कांई पण नथी परंतु जे मनुष्य आपने पोताना हृदयमां
धारण करे छे तेने वश आखुं जगत थई जाय छे ए आश्चर्यनी वात
छे. आप मनरहित छो तोपण सुखेथी (अनंतज्ञानादि गुणोथी संपन्न
होवाने कारणे) जीवो छो अथवा जेमना चित्तमांथी आप बहार छो
तेओ सुखपूर्वक रही शकता नथी अने आप अचिंत्य होवा छतां पण
अनंत सुखमां लीन छो. १५.
त्रिकालतत्त्वं त्वमवैस्त्रिलोकी
स्वामीति संख्यानियतेरमीषां
बोधाधिपत्यं प्रति नाभविष्यं
स्तेऽन्येऽपि चेद्वद्याप्स्यदमूनपीदं ।।१६।।
अर्थ :हे जिनेन्द्रदेव! आप त्रणे काळना जीवादि पदार्थोने
यथार्थरूपे जाणो छो तथा त्रणे लोकोना स्वामी छो. आम कहेवानो
अभिप्राय ए नथी के आपना ज्ञान अने प्रभुत्वनी सीमा आटली ज छे
केम के काळ अने लोकनी संख्या निश्चित छे तेथी आप त्रिकाळज्ञानी अने
त्रिभुवनपति कहेवाओ छो. जो आ उपरांत बीजा पण अनंतकाळ अने
लोक होत तो ते पण आपना ज्ञान अने प्रभुत्वमां समाई ज जात. १६.