इन्द्रना ज आत्मसुखनुं कारण छे. जेम कोई आदरपूर्वक छत्र धारण करे
छे तो तेनाथी तेने ज छायादिरूप सुखनी प्राप्ति थाय छे. तेनाथी सूर्यनो
कांई थोडो ज उपकार थाय छे? तेवी ज रीते भगवाननी सेवा द्वारा इन्द्र
संसारनाशक अतिशय पुण्यनी प्राप्ति करे छे. १७.
प्रतिकूळ उपदेश केम? क्यां इच्छाथी प्रतिकूळ आपनो आ उपदेश? अने
क्यां तेमां सर्व संसारी जीवोनुं प्रियपणुं? आ बधुं परस्पर विरोधी होवा
छतां पण विरोध रहित यथार्थ छे एम मने द्रढ विश्वास छे. १८.
भव्यजीवो प्रत्ये कोई राग नथी तेथी वीतरागी होवामां अने उपदेश
देवामां कोई विरोध नथी. हितकारी होवा छतां पण ते इन्द्रियविषयना
तुच्छ क्षणिक सुखथी प्रतिकूळ छे केम के इन्द्रियविषय सुखनो विपाक अत्यंत
कडवो छे छतां पण शिवसुख आपवानुं मुख्य कारण होवाथी बधाने प्रिय
छे तेथी आपना उपदेशमां कोई विरोध नथी.