Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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विषापहार स्तोत्र ][ ७९
जीव आपनी अवहेलना करे छे ते बुद्धिहीनोनी जेम हाथमां आवेला
सुवर्णने एम कहीने छोडी दे छे के आ पाषाण छे अथवा पाषाणथी
उत्पन्न थयुं छे. २३.
दत्तस्त्रिलोक्यां पटहोऽभिभूताः
सुरासुरास्तस्य महान्स लाभः
मोहस्य मोहस्त्वयि को विरोद्धु
र्मूलस्य नाशो वलवद्धिरोधः ।।२४।।
अर्थ :हे त्रिभुवननाथ! त्रणे लोकमां विजयनुं नगारुं वगाडवाथी
मोहने घणो मोटो विजयलाभ थयो कारण के तेनाथी सुर अने असुर बधा
अपमानित थया. परंतु आपनी समक्ष ते मोह स्वयं मूर्च्छित थई गयो.
ते योग्य ज छे, विरोधीनो बळवाननी साथे विरोध करवाथी मूळ सहित
नाश थाय छे. २४.
मार्गस्त्वयैको ददृशे विमुक्ते
श्चतुर्गतीनां गहनं परेण
सर्वं मया दृष्टमिति स्मयेन
त्वं मा कदाचिद्भुजमालुलोक ।।२५।।
अर्थ :हे जिनेन्द्रदेव! आपे एक मोक्षनो ज मार्ग जोयो छे
अने आपनाथी भिन्न अन्यमती देवोए चारे गतिनो गहन मार्ग जोयो
छे तेथी में बधुं ज जोयुं छे एवा अहंकारथी आपे कदी पण आपनो
हाथ जोयो नहि. २५.
स्वर्भानुरर्कस्य हविर्भुजोऽम्भः,
कल्पान्तवातोऽम्बुनिधेर्विधातः
संसारभोगस्य वियोगभावो,
विपक्षपूर्वाभ्युदयास्त्वदन्ये ।।२६।।