विषापहार स्तोत्र ][ ८५
वितरति विहिता यथा क थञ्चि –
ज्जिन विनताय मनीषितानि भक्तिः ।
त्वयि नुतिविषया पुनर्विशेषा –
िद्रशति सुखानि यशो धनं जयं च ।।४०।।
अर्थ : — हे जिनेन्द्रदेव! जेम कोई पण रीते करेली भक्ति पण
विनयशील भक्तने मनोवांछित फळ आपे छे तो पछी विशुद्ध परिणामोथी
करेली आपनी स्तुति अने भक्ति विशेषपणे सुख, यश, धन अने विजय
आपे छे. ४०.
भावार्थ : — हे भगवान! सम्यग्दर्शनपूर्वक विशुद्ध परिणामो द्वारा
आपनी स्तुति करवाथी विशिष्ट सुख, निर्मल यश, धन-वैभव अने विजय
लाभ मळे छे अने अंते सर्वोपरि मोक्षनुं सुख प्राप्त थाय छे.
ए प्रमाणे महाकवि धनंजयकृत विषापहार स्तोत्रनी
पं. श्रेयांसकुमारजी शास्त्रीकृत भाषाटीकानो
गुजराती अनुवाद पूरो थयो.