Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 37.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
६७

सस्सदमध उच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च

विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुज्जदि असदि सब्भावे ।।३७।।
शाश्वतमथोच्छेदो भव्यमभव्यं च शून्यमितरच्च
विज्ञानमविज्ञानं नापि युज्यते असति सद्भावे ।।३७।।

अत्र जीवाभावो मुक्ति रिति निरस्तम्

द्रव्यं द्रव्यतया शाश्वतमिति, नित्ये द्रव्ये पर्यायाणां प्रतिसमयमुच्छेद इति, द्रव्यस्य सर्वदा अभूतपर्यायैः भाव्यमिति, द्रव्यस्य सर्वदा भूतपर्यायैरभाव्यमिति, द्रव्यमन्य- द्रव्यैः सदा शून्यमिति, द्रव्यं स्वद्रव्येण सदाऽशून्यमिति, क्वचिज्जीवद्रव्येऽनन्तं ज्ञानं क्वचित्सान्तं ज्ञानमिति, क्वचिज्जीवद्रव्येऽनन्तं क्वचित्सान्तमज्ञानमितिएतदन्यथानुपपद्यमानं

सद्भाव जो नहि होय तो ध्रुव, नाश, भव्य, अभव्य ने
विज्ञान, अणविज्ञान, शून्य, अशून्यए कंई नव घटे. ३७.

अन्वयार्थ[ सद्भावे असति ] जो (मोक्षमां जीवनो) सद्भाव न होय तो [ शाश्वतम् ] शाश्वत, [ अथ उच्छेदः ] नाशवंत, [ भव्यम् ] भव्य (थवायोग्य), [ अभव्यम् च ] अभव्य (नहि थवायोग्य), [ शून्यम् ] शून्य, [ इतरत् च ] अशून्य, [ विज्ञानम् ] विज्ञान अने [ अविज्ञानम् ] अविज्ञान [ न अपि युज्यते ] (जीवद्रव्यने विषे ) न ज घटे. (माटे मोक्षमां जीवनो सद्भाव छे ज.)

टीकाअहीं, ‘जीवनो अभाव ते मुक्ति छे’ ए वातनुं खंडन कर्युं छे.

(१) द्रव्य द्रव्यपणे शाश्वत छे, (२) नित्य द्रव्यमां पर्यायोनो प्रत्येक समये नाश थाय छे, (३) द्रव्य सर्वदा अभूत पर्यायोरूपे भाव्य (थवायोग्य, परिणमवायोग्य) छे, (४) द्रव्य सर्वदा भूत पर्यायोरूपे अभाव्य (नहि थवायोग्य) छे, (५) द्रव्य अन्य द्रव्योथी सदा शून्य छे, (६) द्रव्य स्वद्रव्यथी सदा अशून्य छे, (७) कोईक जीवद्रव्यमां अनंत ज्ञान अने कोईकमां सांत ज्ञान छे, (८) कोईक जीवद्रव्यमां अनंत अज्ञान अने

१. जे सम्यक्त्वथी च्युत थवानो न होय एवा सम्यक्त्वी जीवने अनंत ज्ञान छे अने जे च्युत थवानो होय एवा सम्यक्त्वी जीवने सांत ज्ञान छे.

२. अभव्य जीवने अनंत अज्ञान छे अने जेने कोई काळे पण ज्ञान थवानुं छे एवा अज्ञानी भव्य जीवने सांत अज्ञान छे.