चेतयितृत्वगुणव्याख्येयम् ।
एके हि चेतयितारः प्रकृष्टतरमोहमलीमसेन प्रकृष्टतरज्ञानावरणमुद्रितानुभावेन कोईकमां सांत अज्ञान छे — आ बधुं, १अन्यथा नहि घटतुं थकुं, मोक्षमां जीवना सद्भावने जाहेर करे छे. ३७.
अन्वयार्थः — [ त्रिविधेन चेतकभावेन ] त्रिविध चेतकभाव वडे [ एकः जीवराशिः ] एक जीवराशि [ कर्मणां फलम् ] कर्मोना फळने, [ एकः तु ] एक जीवराशि [ कार्यं ] कार्यने [ अथ ] अने [ एकः ] एक जीवराशि [ ज्ञानम् ] ज्ञानने [ चेतयति ] चेते ( – वेदे) छे.
टीकाः — आ, २चेतयितृत्वगुणनी व्याख्या छे.
कोई चेतयिताओ अर्थात् आत्माओ तो, जे अति प्रकृष्ट मोहथी मलिन छे अने जेनो प्रभाव (शक्ति) अति प्रकृष्ट ज्ञानावरणथी बिडाई गयो छे
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१. अन्यथा=अन्य प्रकारे; बीजी रीते. [मोक्षमां जीवनी हयाती ज न रहेती होय तो उक्त आठ
भावो घटे ज नहि. जो मोक्षमां जीवनो अभाव ज थई जतो होय तो, (१) दरेक द्रव्य द्रव्यपणे
शाश्वत छे — ए वात केम घटे? (२) दरेक द्रव्य नित्य रहीने तेमां पर्यायोनो नाश थया करे
छे — ए वात केम घटे? (३ – ६) दरेक द्रव्य सर्वदा अनागत पर्याये भाव्य, सर्वदा अतीत पर्याये
अभाव्य, सर्वदा परथी शून्य अने सर्वदा स्वथी अशून्य छे — ए वातो केम घटे? (७) कोईक
जीवद्रव्यमां अनंत ज्ञान छे — ए वात केम घटे? अने (८) कोईक जीवद्रव्यमां सांत अज्ञान छे
(अर्थात् जीवद्रव्य नित्य रहीने तेमां अज्ञानपरिणामनो अंत आवे छे) — ए वात केम घटे?
माटे आ आठ भावो द्वारा मोक्षमां जीवनी हयाती सिद्ध थाय छे.]
२. चेतयितृत्व=चेतयितापणुं; चेतनारपणुं; चेतकपणुं.