Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 38.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
मुक्तौ जीवस्य सद्भावमावेदयतीति ।।३७।।
कम्माणं फलमेक्को एक्को कज्जं तु णाणमध एक्को
चेदयदि जीवरासी चेदगभावेण तिविहेण ।।३८।।
कर्मणां फलमेकः एकः कार्यं तु ज्ञानमथैकः
चेतयति जीवराशिश्चेतकभावेन त्रिविधेन ।।३८।।

चेतयितृत्वगुणव्याख्येयम्

एके हि चेतयितारः प्रकृष्टतरमोहमलीमसेन प्रकृष्टतरज्ञानावरणमुद्रितानुभावेन कोईकमां सांत अज्ञान छेआ बधुं, अन्यथा नहि घटतुं थकुं, मोक्षमां जीवना सद्भावने जाहेर करे छे. ३७.

त्रणविध चेतकभावथी को जीवराशि ‘कार्य’ने,
को जीवराशि ‘कर्मफळ’ने, कोई चेते ‘ज्ञान’ने. ३८.

अन्वयार्थ[ त्रिविधेन चेतकभावेन ] त्रिविध चेतकभाव वडे [ एकः जीवराशिः ] एक जीवराशि [ कर्मणां फलम् ] कर्मोना फळने, [ एकः तु ] एक जीवराशि [ कार्यं ] कार्यने [ अथ ] अने [ एकः ] एक जीवराशि [ ज्ञानम् ] ज्ञानने [ चेतयति ] चेते (वेदे) छे.

टीकाआ, चेतयितृत्वगुणनी व्याख्या छे.

कोई चेतयिताओ अर्थात् आत्माओ तो, जे अति प्रकृष्ट मोहथी मलिन छे अने जेनो प्रभाव (शक्ति) अति प्रकृष्ट ज्ञानावरणथी बिडाई गयो छे

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१. अन्यथा=अन्य प्रकारे; बीजी रीते. [मोक्षमां जीवनी हयाती ज न रहेती होय तो उक्त आठ भावो घटे ज नहि. जो मोक्षमां जीवनो अभाव ज थई जतो होय तो, (१) दरेक द्रव्य द्रव्यपणे
शाश्वत छे
ए वात केम घटे? (२) दरेक द्रव्य नित्य रहीने तेमां पर्यायोनो नाश थया करे छेए वात केम घटे? (३६) दरेक द्रव्य सर्वदा अनागत पर्याये भाव्य, सर्वदा अतीत पर्याये अभाव्य, सर्वदा परथी शून्य अने सर्वदा स्वथी अशून्य छेए वातो केम घटे? (७) कोईक जीवद्रव्यमां अनंत ज्ञान छेए वात केम घटे? अने (८) कोईक जीवद्रव्यमां सांत अज्ञान छे (अर्थात् जीवद्रव्य नित्य रहीने तेमां अज्ञानपरिणामनो अंत आवे छे)ए वात केम घटे? माटे आ आठ भावो द्वारा मोक्षमां जीवनी हयाती सिद्ध थाय छे.]

२. चेतयितृत्व=चेतयितापणुं; चेतनारपणुं; चेतकपणुं.