Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 39.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
सुखं ज्ञानमेव चेतयन्त इति ।।३८।।
सव्वे खलु कम्मफलं थावरकाया तसा हि कज्जजुदं
पाणित्तमदिक्कंता णाणं विंदंति ते जीवा ।।३९।।
सर्वे खलु कर्मफलं स्थावरकायास्त्रसा हि कार्ययुतम्
प्राणित्वमतिक्रान्ताः ज्ञानं विन्दन्ति ते जीवाः ।।३९।।
अत्र कः किं चेतयत इत्युक्त म्

चेतयन्ते अनुभवन्ति उपलभन्ते विन्दन्तीत्येकार्थाश्चेतनानुभूत्युपलब्धिवेदनानामे- कार्थत्वात् तत्र स्थावराः कर्मफलं चेतयन्ते, त्रसाः कार्यं चेतयन्ते, केवलज्ञानिनो


निर्जरी गयुं छे अने अत्यंत कृतकृत्यपणुं थयुं छे (अर्थात् कांई करवानुं लेशमात्र पण रह्युं नथी). ३८.

वेदे करमफळ स्थावरो, त्रस कार्ययुत फळ अनुभवे,
प्राणित्वथी अतिक्रांत जे ते जीव वेदे ज्ञानने. ३९.

अन्वयार्थ[ सर्वे स्थावरकायाः ] सर्व स्थावर जीवसमूहो [ खलु ] खरेखर [ कर्मफलं ] कर्मफळने वेदे छे, [ त्रसाः ] त्रसो [ हि ] खरेखर [ कार्ययुतम् ] कार्यसहित कर्मफळने वेदे छे अने [ प्राणित्वम् अतिक्रान्ताः ] जे प्राणित्वने (प्राणोने) अतिक्रमी गया छे [ ते जीवाः ] ते जीवो [ ज्ञानं ] ज्ञानने [ विन्दन्ति ] वेदे छे.

टीकाअहीं, कोण शुं चेते छे (अर्थात् कया जीवने कई चेतना होय छे) ते कह्युं छे.

चेते छे, अनुभवे छे, उपलब्ध करे छे अने वेदे छेए एकार्थ छे (अर्थात ए बधा शब्दो एक अर्थवाळा छे), कारण के चेतना, अनुभूति, उपलब्धि अने वेदनानो एक अर्थ छे. त्यां, स्थावरो कर्मफळने चेते छे, त्रसो कार्यने चेते छे,

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१. कृतकृत्य=कृतकार्य. [परिपूर्ण ज्ञानवाळा आत्माओ अत्यंत कृतकार्य छे तेथी, जोके तेमने अनंत वीर्य प्रगट थयुं छे तोपण, तेमनुं वीर्य कार्यचेतनाने (कर्मचेतनाने) रचतुं नथी, (वळी विकारी सुखदुःख विनष्ट थयां होवाथी तेमनुं वीर्य कर्मफळचेतनाने पण रचतुं नथी,) ज्ञानचेतनाने ज रचे छे.]