Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 41.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
जीवादपृथग्भूत एव, एकास्तित्वनिर्वृत्तत्वादिति ।।४०।।

आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि णाणाणि पंचभेयाणि

कुमदिसुदविभंगाणि य तिण्णि वि णाणेहिं संजुत्ते ।।४१।।
आभिनिबोधिकश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानानि पञ्चभेदानि
कुमतिश्रुतविभङ्गानि च त्रीण्यपि ज्ञानैः संयुक्तानि ।।४१।।

ज्ञानोपयोगविशेषाणां नामस्वरूपाभिधानमेतत

तत्राभिनिबोधिकज्ञानं श्रुतज्ञानमवधिज्ञानं मनःपर्ययज्ञानं केवलज्ञानं कुमतिज्ञानं कुश्रुतज्ञानं विभङ्गज्ञानमिति नामाभिधानम् आत्मा ह्यनन्तसर्वात्मप्रदेशव्यापिविशुद्ध-


ज्ञान छे अने सामान्य जेमां प्रतिभासे ते दर्शन छे). वळी उपयोग सर्वदा जीवथी

मति, श्रुत, अवधि, मनः, केवळपांच भेदो ज्ञानना;
कुमति, कुश्रुत, विभंगत्रण पण ज्ञान साथे जोडवां. ४१.

अन्वयार्थ[ आभिनिबोधिकश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ] आभिनिबोधिक (मति), श्रुत, अवधि, मनःपर्यय अने केवळ[ ज्ञानानि पञ्चभेदानि ] एम ज्ञानना पांच भेद छे; [ कुमतिश्रुतविभङ्गानि च ] वळी कुमति, कुश्रुत अने विभंग[ त्रीणि अपि ] ए त्रण (अज्ञानो) पण [ ज्ञानैः ] (पांच) ज्ञानो साथे [ संयुक्तानि ] जोडवामां आव्यां छे. ( प्रमाणे ज्ञानोपयोगना आठ भेद छे.)

टीकाआ, ज्ञानोपयोगना भेदोनां नाम अने स्वरूपनुं कथन छे.

त्यां, (१) आभिनिबोधिकज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनः- पर्ययज्ञान, (५) केवळज्ञान, (६) कुमतिज्ञान, (७) कुश्रुतज्ञान अने (८) विभंगज्ञान ए प्रमाणे (ज्ञानोपयोगना भेदोनां) नामनुं कथन छे.

(हवे तेमनां स्वरूपनुं कथन करवामां आवे छे) आत्मा खरेखर अनंत, सर्व आत्मप्रदेशोमां व्यापक, विशुद्ध ज्ञानसामान्यस्वरूप छे. ते (आत्मा) खरेखर अनादि

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*अपृथग्भूत ज छे, कारण के एक अस्तित्वथी रचायेल छे. ४०.

*अपृथग्भूत=अभिन्न. (उपयोग सदा जीवथी अभिन्न ज छे, कारण के तेओ एक अस्तित्वथी निष्पन्न छे.)