Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
७३

ज्ञानसामान्यात्मा स खल्वनादिज्ञानावरणकर्मावच्छन्नप्रदेशः सन्, यत्तदावरणक्षयोप- शमादिन्द्रियानिन्द्रियावलम्बाच्च मूर्तामूर्तद्रव्यं विकलं विशेषेणावबुध्यते तदाभिनि- बोधिकज्ञानम्, यत्तदावरणक्षयोपशमादनिन्द्रियावलम्बाच्च मूर्तामूर्तद्रव्यं विकलं विशेषेणाव- बुध्यते तत् श्रुतज्ञानम्, यत्तदावरणक्षयोपशमादेव मूर्तद्रव्यं विकलं विशेषेणावबुध्यते तदवधिज्ञानम्, यत्तदावरणक्षयोपशमादेव परमनोगतं मूर्तद्रव्यं विकलं विशेषेणावबुध्यते तन्मनःपर्ययज्ञानम्, यत्सकलावरणात्यन्तक्षये केवल एव मूर्तामूर्तद्रव्यं सकलं विशेषेणाव- बुध्यते तत्स्वाभाविकं केवलज्ञानम् मिथ्यादर्शनोदयसहचरितमाभिनिबोधिकज्ञानमेव कुमतिज्ञानम्, मिथ्यादर्शनोदयसहचरितं श्रुतज्ञानमेव कुश्रुतज्ञानम्, मिथ्यादर्शनोदयसह- ज्ञानावरणकर्मथी आच्छादित प्रदेशोवाळो वर्ततो थको, (१) ते प्रकारना (अर्थात मतिज्ञानना) आवरणना क्षयोपशमथी अने इन्द्रिय-मनना अवलंबनथी मूर्त-अमूर्त द्रव्यने विकळपणे विशेषतः अवबोधे छे ते आभिनिबोधिकज्ञान छे, (२) ते प्रकारना (अर्थात श्रुतज्ञानना) आवरणना क्षयोपशमथी अने मनना अवलंबनथी मूर्त-अमूर्त द्रव्यने विकळपणे विशेषतः अवबोधे छे ते श्रुतज्ञान छे, (३) ते प्रकारना आवरणना क्षयोपशमथी ज मूर्त द्रव्यने विकळपणे विशेषतः अवबोधे छे ते अवधिज्ञान छे, (४) ते प्रकारना आवरणना क्षयोपशमथी ज परमनोगत (पारकाना मन साथे संबंधवाळा) मूर्त द्रव्यने विकळपणे विशेषतः अवबोधे छे ते मनःपर्ययज्ञान छे, (५) समस्त आवरणना अत्यंत क्षये, केवळ ज (आत्मा एकलो ज), मूर्त-अमूर्त द्रव्यने सकळपणे विशेषतः अवबोधे छे ते स्वाभाविक केवळज्ञान छे. (६) मिथ्यादर्शनना उदय साथेनुं आभिनिबोधिकज्ञान ज कुमतिज्ञान छे, (७) मिथ्यादर्शनना उदय साथेनुं श्रुतज्ञान ज कुश्रुतज्ञान छे, (८) मिथ्यादर्शनना उदय साथेनुं अवधिज्ञान ज विभंगज्ञान छे.आ प्रमाणे (ज्ञानोपयोगना भेदोनां) स्वरूपनुं कथन छे. ए रीते मतिज्ञानादि आठ ज्ञानोपयोगोनुं व्याख्यान करवामां आव्युं. भावार्थप्रथम तो, नीचे प्रमाणे पांच ज्ञानोनुं स्वरूप छे

निश्चयनये अखंड-एक-विशुद्धज्ञानमय एवो आ आत्मा व्यवहारनये संसारावस्थामां कर्मावृत वर्ततो थको, मतिज्ञानावरणनो क्षयोपशम होतां, पांच इन्द्रियो पं. १०

१. विकळपणे=अपूर्णपणे; अंशे.

२. विशेषतः अवबोधवुं=जाणवुं. (विशेष अवबोध अर्थात् विशेष प्रतिभास ते ज्ञान छे.)