Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

द्रव्यगुणानामर्थान्तरभूतत्वे दोषोऽयम्

ज्ञानी ज्ञानाद्यद्यर्थान्तरभूतस्तदा स्वकरणांशमन्तरेण परशुरहितदेवदत्तवत्करणव्यापारा- समर्थत्वादचेतयमानोऽचेतन एव स्यात ज्ञानञ्च यदि ज्ञानिनोऽर्थान्तरभूतं तदा तत्कर्त्रंशमन्तरेण देवदत्तरहितपरशुवत्तत्कर्तृत्वव्यापारासमर्थत्वादचेतयमानमचेतनमेव स्यात च ज्ञानज्ञानिनोर्युतसिद्धयोस्संयोगेन चेतनत्वं द्रव्यस्य निर्विशेषस्य गुणानां निराश्रयाणां शून्यत्वादिति ।।४८।।

टीकाद्रव्य अने गुणोने अर्थांतरपणुं होय तो आ (नीचे प्रमाणे) दोष आवे.

जो ज्ञानी (आत्मा) ज्ञानथी अर्थांतरभूत होय तो (आत्मा) पोताना करण- अंश विना, कुहाडी विनाना देवदत्तनी माफक, करणनो व्यापार करवामां असमर्थ थवाथी नहि चेततो (जाणतो) थको अचेतन ज होय. अने जो ज्ञान ज्ञानीथी (आत्माथी) अर्थांतरभूत होय तो ज्ञान तेना कर्तृ-अंश विना, देवदत्त विनानी कुहाडीनी माफक, तेना कर्तानो व्यापार करवामां असमर्थ थवाथी नहि चेततुं ( जाणतुं) थकुं अचेतन ज होय. वळी युतसिद्ध एवां ज्ञान अने ज्ञानीने (ज्ञान अने आत्माने) संयोगथी चेतनपणुं होय एम पण नथी, कारण के निर्विशेष द्रव्य अने निराश्रय गुणो शून्य होय. ४८.

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१. करणनो व्यापार = साधननुं कार्य. [आत्मा कर्ता छे अने ज्ञान करण छे. जो आत्मा ज्ञानथी भिन्न ज होय तो आत्मा साधननो व्यापार अर्थात् ज्ञाननुं कार्य करवामां असमर्थ थवाथी जाणी शके नहि तेथी आत्माने अचेतनपणुं आवे.]

२. कर्तानो व्यापार = कर्तानुं कार्य. [ज्ञान करण छे अने आत्मा कर्ता छे. जो ज्ञान आत्माथी भिन्न ज होय तो ज्ञान कर्तानो व्यापार अर्थात् आत्मानुं कार्य करवामां असमर्थ थवाथी जाणी शके नहि तेथी ज्ञानने अचेतनपणुं आवे.]

३. युतसिद्ध = जोडाईने सिद्ध थयेल; समवायथीसंयोगथी सिद्ध थयेल. [जेम लाकडी अने माणस जुदां होवा छतां लाकडीना योगथी माणस ‘लाकडीवाळो’ थाय छे तेम ज्ञान अने आत्मा जुदां होवा छतां ज्ञान साथे जोडाईने आत्मा ‘ज्ञानवाळो (ज्ञानी)’ थाय छे एम पण नथी. लाकडी अने माणसनी जेम ज्ञान अने आत्मा कदी जुदां होय ज क्यांथी? विशेष रहित द्रव्य होई शके ज नहि, तेथी ज्ञान विनानो आत्मा केवो? अने आश्रय विना गुण होई शके ज नहि, तेथी आत्मा विना ज्ञान केवुं? माटे ‘लाकडी’ अने ‘लाकडीवाळा’नी माफक ‘ज्ञान’ अने ‘ज्ञानी’नुं युतसिद्धपणुं घटतुं नथी.]