Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 68.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

निष्टविषयाणां भोक्तृ त्वात्तथाविधं फलं भुञ्जन्ते इति एतेन जीवस्य भोक्तृत्वगुणोऽपि व्याख्यातः ।।६७।।

तम्हा कम्मं कत्ता भावेण हि संजुदोध जीवस्स
भोत्ता दु हवदि जीवो चेदगभावेण कम्मफलं ।।६८।।
तस्मात्कर्म कर्तृ भावेन हि संयुतमथ जीवस्य
भोक्ता तु भवति जीवश्चेतकभावेन कर्मफलम् ।।६८।।

कर्तृत्वभोक्तृत्वव्याख्योपसंहारोऽयम्

तत एतत् स्थितं निश्चयेनात्मनः कर्म कर्तृ, व्यवहारेण जीवभावस्य; जीवोऽपि निश्चयेनात्मभावस्य कर्ता, व्यवहारेण कर्मण इति यथात्रोभयनयाभ्यां कर्म कर्तृ, तथैकेनापि नयेन न भोक्तृ कुतः ? चैतन्यपूर्वकानुभूतिसद्भावाभावात ततश्चेतनत्वात

आथी (आ कथनथी) जीवना भोक्तृत्वगुणनुं पण व्याख्यान थयुं. ६७.

तेथी करम, जीवभावथी संयुक्त, कर्ता जाणवुं;
भोक्तापणुं तो जीवने चेतकपणे तत्फळ तणुं. ६८.

अन्वयार्थ[ तस्मात् ] तेथी [ अथ जीवस्य भावेन हि संयुतम् ] जीवना भावथी संयुक्त एवुं [ कर्म ] कर्म (द्रव्यकर्म) [ कर्तृ ] कर्ता छे (निश्चयथी पोतानुं कर्ता अने व्यवहारथी जीवभावनुं कर्ता; परंतु ते भोक्ता नथी). [ भोक्ता तु ] भोक्ता तो [ जीवः भवति ] (मात्र) जीव छे [ चेतकभावेन ] चेतकभावने लीधे [ कर्मफलम् ] कर्मफळनो.

टीकाआ, कर्तृत्व अने भोक्तृत्वनी व्याख्यानो उपसंहार छे.

तेथी (पूर्वोक्त कथनथी) एम नक्की थयुं केकर्म निश्चयथी पोतानुं कर्ता छे, व्यवहारथी जीवभावनुं कर्ता छे; जीव पण निश्चयथी पोताना भावनो कर्ता छे, व्यवहारथी कर्मनो कर्ता छे.

जेम अहीं बंने नयोथी कर्म कर्ता छे, तेम एक पण नयथी ते भोक्ता नथी. शा कारणे? कारण के तेने *चैतन्यपूर्वक अनुभूतिनो सद्भाव नथी. तेथी चेतनपणाने

१०

*जे अनुभूति चैतन्यपूर्वक होय तेने ज अहीं भोक्तृत्व कहेल छे, ते सिवायनी अनुभूतिने नहि.