Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 80.

< Previous Page   Next Page >


Page 122 of 256
PDF/HTML Page 162 of 296

 

पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
नियतमुत्पाद्यत्वात् स्कन्धप्रभवत्वमिति ।।७९।।
णिच्चो णाणवगासो ण सावगासो पदेसदो भेत्ता
खंघाणं पि य कत्ता पविहत्ता कालसंखाणं ।।८०।।
नित्यो नानवकाशो न सावकाशः प्रदेशतो भेत्ता
स्कन्धानामपि च कर्ता प्रविभक्ता कालसंख्यायाः ।।८०।।

परमाणोरेकप्रदेशत्वख्यापनमेतत

परमाणुः स खल्वेकेन प्रदेशेन रूपादिगुणसामान्यभाजा सर्वदैवाविनश्वरत्वा- न्नित्यः एकेन प्रदेशेन तदविभक्त वृत्तीनां स्पर्शादिगुणानामवकाशदानान्नानवकाशः


परिणमे छे; ए रीते शब्द नियतपणे (अवश्य) उत्पाद्य छे; तेथी ते स्कंधजन्य छे. ७९.

नहि अनवकाश, न सावकाश प्रदेशथी, अणु शाश्वतो,
भेत्ता रचयिता स्कंधनो, प्रविभागी संख्या-काळनो. ८०.

अन्वयार्थ[ प्रदेशतः ] प्रदेश द्वारा [ नित्यः ] परमाणु नित्य छे, [ न अनवकाशः ] अनवकाश नथी, [ न सावकाशः ] सावकाश नथी, [ स्कन्धानाम् भेत्ता ] स्कंधोनो तोडनार [ अपि च कर्ता ] तेम ज करनार छे तथा [ कालसंख्यायाः प्रविभक्ता ] काळ ने संख्यानो विभागनार छे (अर्थात् काळनो भाग पाडे छे अने संख्यानुं माप करे छे).

टीकाआ, परमाणुना एकप्रदेशीपणानुं कथन छे.

जे परमाणु छे, ते खरेखर एक प्रदेश वडेके जे रूपादिगुणसामान्यवाळो छे तेना वडेसदाय अविनाशी होवाथी नित्य छे; ते खरेखर एक प्रदेश वडे तेनाथी (प्रदेशथी) अभिन्न अस्तित्ववाळा स्पर्शादिगुणोने अवकाश देतो होवाने लीधे

आखा

लोकमां सर्वत्र व्यापेली अनंतपरमाणुमयी शब्दयोग्य वर्गणाओ स्वयमेव शब्दरूपे परिणमती होवा छतां पवन-गळुं-ताळवुं-जीभ-होठ, घंट-मोगरी वगेरे महास्कंधोनुं अथडावुं ते बहिरंगकारणसामग्री छे अर्थात् शब्दरूप परिणमनमां ते महास्कंधो निमित्तभूत छे तेथी ते अपेक्षाए (निमित्त-

अपेक्षाए) शब्दने व्यवहारथी स्कंधजन्य कहेवामां आवे छे.]

१२

१. उत्पाद्य = उत्पन्न करावा योग्य; जेनी उत्पत्तिमां अन्य कोई निमित्त होय छे एवो.
२. स्कंधजन्य = स्कंधो वडे उत्पन्न थाय एवो; जेनी उत्पत्तिमां स्कंधो निमित्त होय छे एवो. [