Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१४१
धर्माधर्माकाशान्यपृथग्भूतानि समानपरिमाणानि
पृथगुपलब्धिविशेषाणि कुर्वन्त्येकत्वमन्यत्वम् ।।९६।।

धर्माधर्मलोकाकाशानामवगाहवशादेकत्वेऽपि वस्तुत्वेनान्यत्वमत्रोक्त म्

धर्माधर्मलोकाकाशानि हि समानपरिमाणत्वात्सहावस्थानमात्रेणैवैकत्वभाञ्जि वस्तुतस्तु व्यवहारेण गतिस्थित्यवगाहहेतुत्वरूपेण निश्चयेन विभक्त प्रदेशत्वरूपेण विशेषेण पृथगुपलभ्य- मानेनान्यत्वभाञ्ज्येव भवन्तीति ।।९६।।

इति आकाशद्रव्यास्तिकायव्याख्यानं समाप्तम्

अन्वयार्थः[ धर्माधर्माकाशानि ] धर्म, अधर्म अने आकाश (लोकाकाश) [ समान- परिमाणानि ] समान परिमाणवाळां [ अपृथग्भूतानि ] अपृथग्भूत होवाथी तेम ज [ पृथगुप- लब्धिविशेषाणि ] पृथक्-उपलब्ध (भिन्नभिन्न) विशेषवाळां होवाथी [ एकत्वम् अन्यत्वम् ] एकत्व तेम ज अन्यत्वने [ कुर्वन्ति ] करे छे.

टीकाःअहीं, धर्म, अधर्म अने लोकाकाशनुं अवगाहनी अपेक्षाए एकत्व होवा छतां वस्तुपणे अन्यत्व कहेवामां आव्युं छे.

धर्म, अधर्म अने लोकाकाश समान परिमाणवाळां होवाने लीधे साथे रहेलां होवामात्रथी ज (मात्र एकक्षेत्रावगाहनी अपेक्षाए ज) एकत्ववाळां छे; वस्तुतः तो, () व्यवहारे गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व अने अवगाहहेतुत्वरूप (पृथक्-उपलब्ध विशेष वडे) तथा () निश्चये विभक्तप्रदेशत्वरूप पृथक्-उपलब्ध विशेष वडे, तेओ अन्यत्ववाळां ज छे.

भावार्थःधर्म, अधर्म अने लोकाकाशनुं एकत्व तो केवळ एकक्षेत्रावगाहनी अपेक्षाए ज कही शकाय छे; वस्तुपणे तो तेमने अन्यत्व ज छे, कारण के () तेमनां लक्षणो गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व अने अवगाहहेतुत्वरूप भिन्नभिन्न छे तथा () तेमना प्रदेशो पण भिन्नभिन्न छे. ९६.

आ रीते आकाशद्रव्यास्तिकायनुं व्याख्यान समाप्त थयुं.

१. विभक्त=भिन्न. [धर्म, अधर्म अने आकाशने भिन्नप्रदेशपणुं छे.]

२. विशेष=खासियत; विशिष्टता; विशेषता. [व्यवहारे तथा निश्चये धर्म, अधर्म अने आकाशना विशेष पृथक् उपलब्ध छे अर्थात् भिन्नभिन्न जोवामां आवे छे.]