Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 98.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१४३

पुद्गल एवैक इति अचेतनमाकाशं, अचेतनः कालः, अचेतनो धर्मः, अचेतनोऽधर्मः, अचेतनः पुद्गलः, चेतनो जीव एवैक इति ।।९७।। जीवा पोग्गलकाया सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा

पोग्गलकरणा जीवा खंधा खलु कालकरणा दु ।।९८।।
जीवाः पुद्गलकायाः सह सक्रिया भवन्ति न च शेषाः
पुद्गलकरणा जीवाः स्कन्धाः खलु कालकरणास्तु ।।९८।।

अत्र सक्रियनिष्क्रियत्वमुक्त म्

प्रदेशान्तरप्राप्तिहेतुः परिस्पन्दनरूपपर्यायः क्रिया तत्र सक्रिया बहिरङ्गसाधनेन सहभूताः जीवाः, सक्रिया बहिरङ्गसाधनेन सहभूताः पुद्गलाः निष्क्रियमाकाशं, निष्क्रियो धर्मः, निष्क्रियोऽधर्मः, निष्क्रियः कालः जीवानां सक्रियत्वस्य बहिरङ्गसाधनं


मूर्त पण छे, धर्म अमूर्त छे, अधर्म अमूर्त छे; पुद्गल ज एक मूर्त छे. आकाश अचेतन छे, काळ अचेतन छे, धर्म अचेतन छे, अधर्म अचेतन छे, पुद्गल अचेतन छे; जीव ज एक चेतन छे. ९७.

जीव-पुद्गलो सहभूत छे सक्रिय, निष्क्रिय शेष छे;
छे काळ पुद्गलने करण, पुद्गल करण छे जीवने. ९८.

अन्वयार्थः[ सह जीवाः पुद्गलकायाः ] बाह्य करण सहित रहेला जीवो अने पुद्गलो [ सक्रियाः भवन्ति ] सक्रिय छे, [ न च शेषाः ] बाकीनां द्रव्यो सक्रिय नथी (निष्क्रिय छे); [ जीवाः ] जीवो [ पुद्गलकरणाः ] पुद्गलकरणवाळा (जेमने सक्रियपणामां पुद्गल बहिरंग साधन होय एवा) छे [ स्कन्धाः खलु कालकरणाः तु ] अने स्कंधो अर्थात पुद्गलो तो काळकरणवाळा (जेमने सक्रियपणामां काळ बहिरंग साधन होय एवा) छे.

टीकाःअहीं (द्रव्योनुं) सक्रिय-निष्क्रियपणुं कहेवामां आव्युं छे.

प्रदेशांतरप्राप्तिनो हेतु (अन्य प्रदेशनी प्राप्तिनुं कारण) एवो जे परिस्पंदरूप पर्याय, ते क्रिया छे. त्यां, बहिरंग साधन साथे रहेला जीवो सक्रिय छे; बहिरंग साधन साथे रहेला पुद्गलो सक्रिय छे. आकाश निष्क्रिय छे; धर्म निष्क्रिय छे; अधर्म निष्क्रिय छे; काळ निष्क्रिय छे.