Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 99.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

कर्मनोकर्मोपचयरूपाः पुद्गला इति ते पुद्गलकरणाः तदभावान्निःक्रियत्वं सिद्धानाम् पुद्गलानां सक्रियत्वस्य बहिरङ्गसाधनं परिणामनिर्वर्तकः काल इति ते कालकरणाः न च कर्मादीनामिव कालस्याभावः ततो न सिद्धानामिव निष्क्रियत्वं पुद्गलानामिति ।।९८।। जे खलु इंदियगेज्झा विसया जीवेहिं होंति ते मुत्ता

सेसं हवदि अमुत्तं चित्तं उभयं समादियदि ।।९९।।
ये खलु इन्द्रियग्राह्या विषया जीवैर्भवन्ति ते मूर्ताः
शेषं भवत्यमूर्तं चित्तमुभयं समाददाति ।।९९।।

मूर्तामूर्तलक्षणाख्यानमेतत

जीवोने सक्रियपणानुं बहिरंग साधन कर्म-नोकर्मना संचयरूप पुद्गलो छे; तेथी जीवो पुद्गलकरणवाळा छे. तेना अभावने लीधे (पुद्गलकरणना अभावने लीधे) सिद्धोने निष्क्रियपणुं छे (अर्थात् सिद्धोने कर्म-नोकर्मना संचयरूप पुद्गलोनो अभाव होवाथी तेओ निष्क्रिय छे.) पुद्गलोने सक्रियपणानुं बहिरंग साधन *परिणामनिष्पादक काळ छे; तेथी पुद्गलो काळकरणवाळा छे.

कर्मादिकनी माफक (अर्थात् जेम कर्म-नोकर्मरूप पुद्गलोनो अभाव थाय छे तेम) काळनो अभाव होतो नथी; तेथी सिद्धोनी माफक (अर्थात् जेम सिद्धोने निष्क्रियपणुं होय छे तेम) पुद्गलोने निष्क्रियपणुं होतुं नथी. ९८.

छे जीवने जे विषय इन्द्रियग्राह्य, ते सौ मूर्त छे;
बाकी बधुंय अमूर्त छे; मन जाणतुं ते उभयने. ९९.

अन्वयार्थः[ ये खलु ] जे पदार्थो [ जीवैः इन्द्रियग्राह्याः विषयाः ] जीवोना इन्द्रियग्राह्य विषयो छे [ ते मूर्ताः भवन्ति ] तेओ मूर्त छे अने [ शेषं ] बाकीनो पदार्थसमूह [ अमूर्तं भवति ] अमूर्त छे. [ चित्तम् ] चित्त [ उभयं ] ते बंनेने [ समाददाति ] ग्रहण करे छे (जाणे छे).

टीकाःआ, मूर्त अने अमूर्तनां लक्षणनुं कथन छे.

१४

*परिणामनिष्पादक=परिणामनो निपजावनारो; परिणाम नीपजवामां जे निमित्तभूत (बहिरंग साधनभूत) छे एवो.