Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
१४५

इह हि जीवैः स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुर्भिरिन्द्रियैस्तद्विषयभूताः स्पर्शरसगन्धवर्णस्वभावा अर्था गृह्यन्ते श्रोत्रेन्द्रियेण तु त एव तद्विषयहेतुभूतशब्दाकारपरिणता गृह्यन्ते ते कदाचित्स्थूलस्कन्धत्वमापन्नाः कदाचित्सूक्ष्मत्वमापन्नाः कदाचित्परमाणुत्वमापन्नाः इन्द्रिय- ग्रहणयोग्यतासद्भावाद् गृह्यमाणा अगृह्यमाणा वा मूर्ता इत्युच्यन्ते शेषमितरत् समस्तमप्यर्थ- जातं स्पर्शरसगन्धवर्णाभावस्वभावमिन्द्रियग्रहणयोग्यताया अभावादमूर्तमित्युच्यते चित्तग्रहण- योग्यतासद्भावभाग्भवति तदुभयमपि; चित्तं ह्यनियतविषयमप्राप्यकारि मतिश्रुतज्ञानसाधनीभूतं मूर्तममूर्तं च समाददातीति ।।९९।।इति चूलिका समाप्ता

आ लोकमां जीवो वडे स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय, घ्राणेंद्रिय अने चक्षुरिंद्रिय द्वारा तेमना (ते इन्द्रियोना) विषयभूत, स्पर्श-रस-गंध-वर्णस्वभाववाळा पदार्थो (स्पर्श, रस, गंध अने वर्ण जेमनो स्वभाव छे एवा पदार्थो) ग्रहाय छे (जणाय छे); अने श्रोत्रेंद्रिय द्वारा ते ज पदार्थो तेना (श्रोत्रेंद्रियना) विषयहेतुभूत शब्दाकारे परिणम्या थका ग्रहाय छे. तेओ (ते पदार्थो), कदाचित् स्थूलस्कंधपणाने पामता थका, कदाचित् सूक्ष्मत्वने (सूक्ष्मस्कंधपणाने) पामता थका अने कदाचित् परमाणुपणाने पामता थका इन्द्रियो द्वारा ग्रहाता होय के न ग्रहाता होय, इन्द्रियो वडे ग्रहावानी योग्यतानो (सदा) सद्भाव होवाथी ‘मूर्त’ कहेवाय छे.

स्पर्श-रस-गंध-वर्णनो अभाव जेनो स्वभाव छे एवो बाकीनो अन्य समस्त पदार्थसमूह इंद्रियो वडे ग्रहावानी योग्यताना अभावने लीधे ‘अमूर्त’ कहेवाय छे.

ते बंने (पूर्वोक्त बंने प्रकारना पदार्थो) चित्त वडे ग्रहावानी योग्यताना सद्भाववाळा छे; चित्तके जे अनियत विषयवाळुं, अप्राप्यकारी अने मतिश्रुतज्ञानना साधनभूत (मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञानमां निमित्तभूत) छे तेमूर्त तेम ज अमूर्तने ग्रहण करे छे (जाणे छे). ९९.

आ रीते चूलिका समाप्त थई. पं. १९

१. ते स्पर्श-रस-गंध-वर्णस्वभाववाळा पदार्थोने (अर्थात् पुद्गलोने) श्रोत्रेंद्रियना विषय थवामां हेतुभूत शब्दाकारपरिणाम छे, तेथी ते पदार्थो (पुद्गलो) शब्दाकारे परिणम्या थका श्रोत्रेद्रिंय द्वारा ग्रहाय छे.

२. अनियत=अनिश्चित. [जेम पांच इन्द्रियोमांनी प्रत्येक इन्द्रियनो विषय नियत छे तेम मननो विषय नियत नथी, अनियत छे.]

३. अप्राप्यकारी=ज्ञेय विषयोने स्पर्श्या विना कार्य करनारजाणनार. [मन अने चक्षु अप्राप्यकारी छे, चक्षु सिवायनी चार इन्द्रियो प्राप्यकारी छे.]