Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
१५७

तत्त्वविनिश्चयबीजम् तेषामेव मिथ्यादर्शनोदयान्नौयानसंस्कारादि स्वरूपविपर्ययेणा- ध्यवसीयमानानां तन्निवृत्तौ समञ्जसाध्यवसायः सम्यग्ज्ञानं, मनाग्ज्ञानचेतना- प्रधानात्मतत्त्वोपलम्भबीजम् सम्यग्दर्शनज्ञानसन्निधानादमार्गेभ्यः समग्रेभ्यः परिच्युत्य स्वतत्त्वे विशेषेण रूढमार्गाणां सतामिन्द्रियानिन्द्रियविषयभूतेष्वर्थेषु रागद्वेषपूर्वक- विकाराभावान्निर्विकारावबोधस्वभावः समभावश्चारित्रं, तदात्वायतिरमणीयमनणीयसो- ऽपुनर्भवसौख्यस्यैकबीजम् इत्येष त्रिलक्षणो मोक्षमार्गः पुरस्तान्निश्चयव्यवहाराभ्यां व्याख्यास्यते इह तु सम्यग्दर्शनज्ञानयोर्विषयभूतानां नवपदार्थानामुपोद्घातहेतुत्वेन सूचित इति ।।१०७।। संस्कारनी माफक मिथ्यादर्शनना उदयने लीधे जेओ स्वरूपविपर्ययपूर्वक अध्यवसित थाय छे (अर्थात् विपरीत स्वरूपे समजाय छेभासे छे) एवा ते ‘भावो’नो ज (नव पदार्थोनो ज), मिथ्यादर्शनना उदयनी निवृत्ति होतां, जे सम्यक् अध्यवसाय (सत्य समजण, यथार्थ अवभास, साचो अवबोध) थवो, ते सम्यग्ज्ञान छेके जे (सम्यग्ज्ञान) कांईक अंशे ज्ञानचेतनाप्रधान आत्मतत्त्वनी उपलब्धिनुं (अनुभूतिनुं) बीज छे. सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानना सद्भावने लीधे समस्त अमार्गोथी छूटीने जेओ स्वतत्त्वमां विशेषपणे रूढ मार्गवाळा थया छे तेमने इन्द्रिय अने मनना विषयभूत पदार्थो प्रत्ये रागद्वेषपूर्वक विकारना अभावने लीधे जे निर्विकारज्ञान- स्वभाववाळो समभाव होय छे, ते चारित्र छेके जे (चारित्र) ते काळे अने आगामी काळे रमणीय छे अने अपुनर्भवना (मोक्षना) महा सौख्यनुं एक बीज छे.

आवा आ त्रिलक्षण (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रात्मक) मोक्षमार्गनुं आगळ निश्चय अने व्यवहारथी व्याख्यान करवामां आवशे. अहीं तो सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानना विषयभूत नव पदार्थोना उपोद्घातना हेतु तरीके तेनुं सूचन करवामां आव्युं छे. १०७.

*अहीं ‘संस्कारादि’ ने बदले घणुं करीने ‘संस्कारादिव’ होवुं जोईए एम लागे छे.

१. रूढ=रीढो; पाको; परिचयथी द्रढ थयेलो. (सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानने लीधे जेमनो स्वतत्त्वगत मार्ग विशेष रूढ थयो छे तेमने इन्द्रियमनना विषयो प्रत्ये रागद्वेषना अभावने लीधे वर्ततो
निर्विकारज्ञानस्वभावी समभाव ते चारित्र छे
).

२. उपोद्घात=प्रस्तावना [सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग छे. मोक्षमार्गनां प्रथमनां बे अंग जे सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान तेमना विषयो नव पदार्थ छे; तेथी हवेनी गाथाओमां नव पदार्थनुं