Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Jiv Padarth Vyakhyan Gatha: 109.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
कर्मपुद्गलानां च मोक्ष इति ।।१०८।।
अथ जीवपदार्थव्याख्यानं प्रपञ्चयति
जीवा संसारत्था णिव्वादा चेदणप्पगा दुविहा
उवओगलक्खणा वि य देहादेहप्पवीचारा ।।१०९।।
जीवाः संसारस्था निर्वृत्ताः चेतनात्मका द्विविधाः
उपयोगलक्षणा अपि च देहादेहप्रवीचाराः ।।१०९।।

जीवस्वरूपोद्देशोऽयम्

जीवाः हि द्विविधाः, संसारस्था अशुद्धा, निर्वृत्ताः शुद्धाश्च ते खलूभयेऽपि चेतनास्वभावाः, चेतनापरिणामलक्षणेनोपयोगेन लक्षणीयाः तत्र संसारस्था देहप्रवीचाराः, निर्वृत्ता अदेहप्रवीचारा इति ।।१०९।।


विश्लेष (वियोग) ते मोक्ष छे. १०८.

हवे जीवपदार्थनुं व्याख्यान विस्तारथी करवामां आवे छे.

जीवो द्विविधसंसारी, सिद्धो; चेतनात्मक उभय छे;
उपयोगलक्षण उभय; एक सदेह, एक अदेह छे. १०९.

अन्वयार्थ[ जीवाः द्विविधाः ] जीवो बे प्रकारना छेः [ संसारस्थाः निर्वृत्ताः ] संसारी अने सिद्ध. [ चेतनात्मकाः ] तेओ चेतनात्मक (चेतनास्वभाववाळा) [ अपि च ] तेम [ उपयोगलक्षणाः ] उपयोगलक्षणवाळा छे. [ देहादेहप्रवीचाराः ] संसारी जीवो देहमां वर्तनारा अर्थात् देहसहित छे अने सिद्ध जीवो देहमां नहि वर्तनारा अर्थात् देहरहित छे.

टीकाआ, जीवना स्वरूपनुं कथन छे.

जीवो बे प्रकारना छेः () संसारी अर्थात् अशुद्ध, अने () सिद्ध अर्थात शुद्ध. ते बंनेय खरेखर चेतनास्वभाववाळा छे अने *चेतनापरिणामस्वरूप उपयोग वडे लक्षित थवायोग्य (ओळखावायोग्य) छे. तेमां, संसारी जीवो देहमां वर्तनारा अर्थात देहसहित छे अने सिद्ध जीवो देहमां नहि वर्तनारा अर्थात् देहरहित छे. १०९.

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*चेतनानो परिणाम ते उपयोग. आ उपयोग जीवरूपी लक्ष्यनुं लक्षण छे.