Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 115.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
१६५

एते स्पर्शनरसनेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति स्पर्शरसयोः परिच्छेत्तारो द्वीन्द्रिया अमनसो भवन्तीति ।।११४।।

जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया विच्छुयादिया कीडा
जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा ।।११५।।
यूकाकुम्भीमत्कुणपिपीलिका वृश्चिकादयः कीटाः
जानन्ति रसं स्पर्शं गन्धं त्रीन्द्रियाः जीवाः ।।११५।।

त्रीन्द्रियप्रकारसूचनेयम्

एते स्पर्शनरसनघ्राणेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति स्पर्शरसगन्धानां परिच्छेत्तारस्त्रीन्द्रिया अमनसो भवन्तीति ।।११५।।

स्पर्शनेन्द्रिय अने रसनेन्द्रियना (ए बे भावेन्द्रियोना) आवरणना क्षयोपशमने लीधे तथा बाकीनी इन्द्रियोना (त्रण भावेन्द्रियोना) आवरणनो उदय तेम ज मनना (भावमनना) आवरणनो उदय होवाथी स्पर्श अने रसने जाणनारा आ (शंबूक वगेरे) जीवो मनरहित द्वीन्द्रिय जीवो छे. ११४.

जू, कुंभी, माकड, कीडी तेम ज वृश्चिकादिक जंतु जे
रस, गंध तेम ज स्पर्श जाणे, जीव त्रीन्द्रिय तेह छे. ११५.

अन्वयार्थ[ यूकाकुम्भीमत्कुणपिपीलिकाः ] जू, कुंभी, माकड, कीडी अने [ वृश्चिकादयः ] वींछी वगेरे [ कीटाः ] जंतुओ [ रसं स्पर्शं गंधं ] रस, स्पर्श अने गंधने [ जानन्ति ] जाणे छे; [ त्रीन्द्रियाः जीवाः ] ते त्रीन्द्रिय जीवो छे.

टीकाआ, त्रीन्द्रिय जीवोना प्रकारनी सूचना छे.

स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय अने घ्राणेन्द्रियना आवरणना क्षयोपशमने लीधे तथा बाकीनी इन्द्रियोना आवरणनो उदय तेम ज मनना आवरणनो उदय होवाथी स्पर्श, रस अने गंधने जाणनारा आ (जू वगेरे) जीवो मनरहित त्रीन्द्रिय जीवो छे. ११५.