Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 123.

< Previous Page   Next Page >


Page 174 of 256
PDF/HTML Page 214 of 296

 

पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
एवमभिगम्म जीवं अण्णेहिं वि पज्जएहिं बहुगेहिं
अभिगच्छदु अज्जीवं णाणंतरिदेहिं लिंगेहिं ।।१२३।।
एवमभिगम्य जीवमन्यैरपि पर्यायैर्बहुकैः
अभिगच्छत्वजीवं ज्ञानान्तरितैर्लिङ्गैः ।।१२३।।

जीवाजीवव्याख्योपसंहारोपक्षेपसूचनेयम्

एवमनया दिशा व्यवहारनयेन कर्मग्रन्थप्रतिपादितजीवगुणमार्गणास्थानादिप्रपञ्चित- हित-अहितमां प्रवर्ततां नथी के तेमनां फळने भोगवतां नथी; माटे जे जाणे छे अने देखे छे, सुखनी इच्छा करे छे, दुःखना भयनी लागणी करे छे, शुभ-अशुभ भावोमां प्रवर्ते छे अने तेमनां फळने भोगवे छे, ते, अचेतन पदार्थोनी साथे रह्यो होवा छतां सर्व अचेतन पदार्थोनी क्रियाओथी तद्दन विशिष्ट प्रकारनी क्रियाओने करनारो, एक विशिष्ट पदार्थ छे. आम जीव नामनो चैतन्यस्वभावी पदार्थविशेष के जेने ज्ञानीओ स्वयं स्पष्ट अनुभवे छे तेतेनी असाधारण क्रियाओ द्वारा अनुमेय पण छे. १२२.

बीजाय बहु पर्यायथी ए रीत जाणी जीवने,
जाणो अजीवपदार्थ ज्ञानविभिन्न जड लिंगो वडे. १२३.

अन्वयार्थ[ एवम् ] ए रीते [ अन्यैः अपि बहुकैः पर्यायैः ] बीजा पण बहु पर्यायो वडे [ जीवम् अभिगम्य ] जीवने जाणीने [ ज्ञानान्तरितैः लिङ्गैः ] ज्ञानथी अन्य एवां (जड) लिंगो वडे [ अजीवम् अभिगच्छतु ] अजीवने जाणो.

टीकाआ, जीव-व्याख्यानना उपसंहारनी अने अजीव-व्याख्यानना प्रारंभनी सूचना छे.

ए रीते आ निर्देश प्रमाणे (अर्थात् उपर संक्षेपमां समजाव्या प्रमाणे), () व्यवहारनयथी कर्मग्रंथप्रतिपादित जीवस्थानगुणस्थानमार्गणास्थान इत्यादि

१७

१. कर्मग्रंथप्रतिपादित=गोम्मटसारादि कर्मपद्धतिना ग्रंथोमां प्ररूपवामांनिरूपवामां आवेलां