Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 128.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
१७९

रूपिभ्योऽरूपिभ्यश्चाजीवेभ्यो विशिष्टं जीवद्रव्यम् एवमिह जीवाजीवयोर्वास्तवो भेदः सम्यग्ज्ञानिनां मार्गप्रसिद्धयर्थं प्रतिपादित इति ।।१२६१२७।।

इति अजीवपदार्थव्याख्यानं समाप्तम्

उक्तौ मूलपदार्थौ अथ संयोगपरिणामनिर्वृत्तेतरसप्तपदार्थानामुपोद्घातार्थं जीवपुद्गल- कर्मचक्रमनुवर्ण्यते जो खलु संसारत्थो जीवो तत्तो दु होदि परिणामो

परिणामादो कम्मं कम्मादो होदि गदिसु गदी ।।१२८।। पर्यायोरूपे परिणत होवाने लीधे इन्द्रियग्रहणयोग्य नथी, ते, चेतनागुणमयपणाने लीधे रूपी तेम ज अरूपी अजीवोथी *विशिष्ट (भिन्न) एवुं जीवद्रव्य छे.

आ रीते अहीं जीव अने अजीवनो वास्तविक भेद सम्यग्ज्ञानीओना मार्गनी प्रसिद्धि अर्थे प्रतिपादित करवामां आव्यो.

[भावार्थःअनादि मिथ्यावासनाने लीधे जीवोने पोते कोण छे तेनुं वास्तविक ज्ञान नथी अने पोताने शरीरादिरूप माने छे. तेमने जीवद्रव्य अने अजीवद्रव्यनो वास्तविक भेद दर्शावी मुक्तिनो मार्ग प्राप्त कराववा अर्थे अहीं जड पुद्गलद्रव्यनां अने चेतन जीवद्रव्यनां वीतरागसर्वज्ञकथित लक्षणो कहेवामां आव्यां. जे जीव ते लक्षणो जाणी, पोताने एक स्वतःसिद्ध स्वतंत्र द्रव्य तरीके ओळखी, भेदविज्ञानी अनुभवी थाय छे, ते निजात्मद्रव्यमां लीन थई मोक्षमार्गने साधी शाश्वत निराकुळ सुखनो भोक्ता थाय छे.

] १२६१२७.

आ रीते अजीवपदार्थनुं व्याख्यान समाप्त थयुं.

बे मूळपदार्थो कहेवामां आव्या. हवे (तेमना) संयोगपरिणामथी निष्पन्न थता अन्य सात पदार्थोना उपोद्घात अर्थे जीवकर्म अने पुद्गलकर्मनुं चक्र वर्णववामां आवे छे.

संसारगत जे जीव छे परिणाम तेने थाय छे,
परिणामथी कर्मो, करमथी गमन गतिमां थाय छे; १२८.

*विशिष्ट = भिन्न; विलक्षण; खास प्रकारनुं.