Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
१८१

परिणामात्पुनः पुद्गलपरिणामात्मकं कर्म कर्मणो नारकादिगतिषु गतिः गत्यधि- गमनाद्देहः देहादिन्द्रियाणि इन्द्रियेभ्यो विषयग्रहणम् विषयग्रहणाद्रागद्वेषौ रागद्वेषाभ्यां पुनः स्निग्धः परिणामः परिणामात्पुनः पुद्गलपरिणामात्मकं कर्म कर्मणः पुनर्नारकादिगतिषु गतिः गत्यधिगमनात्पुनर्देहः देहात्पुनरिन्द्रियाणि इन्द्रियेभ्यः पुनर्विषयग्रहणम् विषयग्रहणात्पुना रागद्वेषौ रागद्वेषाभ्यां पुनरपि स्निग्धः परिणामः एवमिदमन्योन्यकार्यकारणभूतजीवपुद्गलपरिणामात्मकं कर्मजालं संसारचक्रे जीवस्यानाद्यनिधनं अनादिसनिधनं वा चक्रवत्परिवर्तते तदत्र पुद्गलपरिणामनिमित्तो जीवपरिणामो जीव- परिणामनिमित्तः पुद्गलपरिणामश्च वक्ष्यमाणपदार्थबीजत्वेन संप्रधारणीय इति ।।१२८१३०।।

टीकाःआ लोकमां संसारी जीवथी अनादि बंधनरूप उपाधिना वशे स्निग्ध परिणाम थाय छे, परिणामथी पुद्गलपरिणामात्मक कर्म, कर्मथी नरकादि गतिओमां गमन, गतिनी प्राप्तिथी देह, देहथी इन्द्रियो, इन्द्रियोथी विषयग्रहण, विषयग्रहणथी रागद्वेष, रागद्वेषथी पाछा स्निग्ध परिणाम, परिणामथी पाछुं पुद्गलपरिणामात्मक कर्म, कर्मथी पाछुं नरकादि गतिओमां गमन, गतिनी प्राप्तिथी पाछो देह, देहथी पाछी इन्द्रियो, इन्द्रियोथी पाछुं विषयग्रहण, विषयग्रहणथी पाछा रागद्वेष, रागद्वेषथी वळी पाछा स्निग्ध परिणाम. ए प्रमाणे आ अन्योन्य *कार्यकारणभूत जीवपरिणामात्मक अने पुद्गलपरिणामात्मक कर्मजाळ संसारचक्रमां जीवने अनादि-अनंतपणे अथवा अनादि- सांतपणे चक्रनी माफक फरीफरीने थया करे छे.

आ रीते अहीं (एम कह्युं के), पुद्गलपरिणाम जेनुं निमित्त छे एवा जीवपरिणाम अने जीवपरिणाम जेनुं निमित्त छे एवा पुद्गलपरिणाम हवे पछी कहेवामां आवनारा (पुण्यादि सात) पदार्थोना बीज तरीके अवधारवा.

भावार्थःजीव अने पुद्गलने परस्पर निमित्त-नैमित्तिकपणे परिणाम थाय छे. ते परिणामने लीधे पुण्यादि पदार्थो उत्पन्न थाय छे, जेमनुं वर्णन हवेनी गाथाओमां करवामां आवशे.

प्रश्नःपुण्यादि सात पदार्थोनुं प्रयोजन जीव अने अजीव ए बेथी ज पूरुं थई जाय छे, कारण के तेओ जीव अने अजीवना ज पर्यायो छे. तो पछी ते सात

*कार्य एटले नैमित्तिक, अने कारण एटले निमित्त. [जीवपरिणामात्मक कर्म अने पुद्गल-परिणामात्मक कर्म परस्पर कार्यकारणभूत अर्थात् नैमित्तिक-निमित्तभूत छे. ते कर्मो कोई जीवने अनादि-अनंत अने कोई जीवने अनादि-सांत होय छे.]