Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Punya-Pap Padarth Vyakhyan.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

अथ पुण्यपापपदार्थव्याख्यानम् पदार्थो शा माटे कहेवामां आवे छे?

उत्तरःभव्योने हेय तत्त्व अने उपादेय तत्त्व (अर्थात् हेय तत्त्व अने उपादेय तत्त्वनुं स्वरूप तथा तेमनां कारणो) दर्शाववा अर्थे तेमनुं कथन छे. दुःख ते हेय तत्त्व छे, तेनुं कारण संसार छे, संसारनुं कारण आस्रव अने बंध बे छे (अथवा विस्तारथी कहीए तो पुण्य, पाप, आस्रव अने बंध चार छे) अने तेमनुं कारण मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्र छे. सुख ते उपादेय तत्त्व छे, तेनुं कारण मोक्ष छे, मोक्षनुं कारण संवर अने निर्जरा छे अने तेमनुं कारण सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र छे. आ प्रयोजनभूत वात भव्य जीवोने प्रगटपणे दर्शाववा अर्थे पुण्यादि *सात पदार्थोनुं कथन छे. १२८१३०.

हवे पुण्यपापपदार्थोनुं व्याख्यान छे.

निर्दोष परमात्मानुं) आराधन करनारा आचार्य-उपाध्याय-साधुओनी निर्भर
असाधारण भक्तिरूप एवुं जे संसारविच्छेदना कारणभूत, परंपराए मुक्तिकारणभूत, तीर्थंकरप्रकृति
वगेरे पुण्यनो अनुबंध करनारुं विशिष्ट पुण्य तेने अनीहितवृत्तिए निदानरहित परिणामथी करे
छे. आ रीते अज्ञानी जीव पापादि चार पदार्थोनो कर्ता छे अने ज्ञानी संवरादि त्रण पदार्थोनो
कर्ता छे.
[अहीं ज्ञानीना विशिष्ट पुण्यने संसारविच्छेदना कारणभूत कह्युं त्यां एम समजवुं के
खरेखर तो सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र ज संसारविच्छेदना कारणभूत छे, परंतु ज्यारे ते
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र अपूर्णदशामां होय छे त्यारे तेनी साथे अनिच्छितवृत्तिए वर्तता विशिष्ट
पुण्यमां संसारविच्छेदना कारणपणानो आरोप करवामां आवे छे. ते आरोप पण वास्तविक
कारणनी
सम्यग्दर्शनादिनीहयातीमां ज थई शके.]

१८

*अज्ञानी अने ज्ञानी जीव पुण्यादि सात पदार्थोमांथी कया कया पदार्थोना कर्ता छे ते संबंधी
आचार्यवर श्री जयसेनाचार्यदेवकृत तात्पर्यवृत्ति नामनी टीकामां नीचे प्रमाणे वर्णन छेः
अज्ञानी जीव निर्विकार स्वसंवेदनना अभावने लीधे पापपदार्थनो तथा आस्रव-बंधपदार्थोनो कर्ता थाय छे; कदाचित् मंद मिथ्यात्वना उदयथी, देखेलासांभळेलाअनुभवेला भोगोनी आकांक्षारूप निदानबंध वडे, भविष्यकाळमां पापनो अनुबंध करनारा पुण्यपदार्थनो पण कर्ता थाय
छे. जे ज्ञानी जीव छे ते, निर्विकार-आत्मतत्त्वविषयक रुचि, तद्दविषयक ज्ञप्ति अने तद्दविषयक
निश्चळ अनुभूतिरूप अभेदरत्नत्रयपरिणाम वडे, संवर-निर्जरा-मोक्षपदार्थोनो कर्ता थाय छे; अने
ज्यारे पूर्वोक्त निश्चयरत्नत्रयमां स्थिर रही शकतो नथी त्यारे निर्दोषपरमात्मस्वरूप अर्हंत-
सिद्धोनी तथा तेनुं (