Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 133.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
१८५

भावपापम् पुद्गलस्य कर्तुर्निश्चयकर्मतामापन्नो विशिष्टप्रकृतित्वपरिणामो जीवशुभ- परिणामनिमित्तो द्रव्यपुण्यम् पुद्गलस्य कर्तुर्निश्चयकर्मतामापन्नो विशिष्टप्रकृतित्वपरिणामो जीवाशुभपरिणामनिमित्तो द्रव्यपापम् एवं व्यवहारनिश्चयाभ्यामात्मनो मूर्तममूर्तञ्च कर्म प्रज्ञापितमिति ।।१३२।। जम्हा कम्मस्स फलं विसयं फासेहिं भुंजदे णियदं

जीवेण सुहं दुक्खं तम्हा कम्माणि मुत्ताणि ।।१३३।।
यस्मात्कर्मणः फलं विषयः स्पर्शैर्भुज्यते नियतम्
जीवेन सुखं दुःखं तस्मात्कर्माणि मूर्तानि ।।१३३।।

पुद्गलरूप कर्ताना *निश्चयकर्मभूत विशिष्टप्रकृतिरूप परिणाम (शातावेदनीयादि खास प्रकृतिरूप परिणाम)के जेमां जीवना शुभपरिणाम निमित्त छे तेद्रव्यपुण्य छे. पुद्गलरूप कर्ताना निश्चयकर्मभूत विशिष्टप्रकृतिरूप परिणाम (अशातावेदनीयादि खास प्रकृतिरूप परिणाम)के जेमां जीवना अशुभपरिणाम निमित्त छे तेद्रव्यपाप छे.

आ प्रमाणे व्यवहार तथा निश्चय वडे आत्माने मूर्त तथा अमूर्त कर्म दर्शाववामां आव्युं.

भावार्थःनिश्चयथी जीवना अमूर्त शुभाशुभपरिणामरूप भावपुण्यपाप जीवनुं कर्म छे. शुभाशुभपरिणाम द्रव्यपुण्यपापनुं निमित्तकारण होवाने लीधे मूर्त एवां ते पुद्गलपरिणामरूप (शाता-अशातावेदनीयादि) द्रव्यपुण्यपाप व्यवहारथी जीवनुं कर्म कहेवाय छे. १३२.

छे कर्मनुं फळ विषय, तेने नियमथी अक्षो वडे
जीव भोगवे दुःखे-सुखे, तेथी करम ते मूर्त छे. १३३.

अन्वयार्थः[ यस्मात् ] कारण के [ कर्मणः फलं ] कर्मनुं फळ [ विषयः ] जे (मूर्त) विषय ते [ नियतम् ] नियमथी [ स्पर्शैः ] (मूर्त एवी) स्पर्शनादिइन्द्रियो द्वारा [ जीवेन ] जीव पं. २४

*पुद्गल कर्ता छे अने विशिष्टप्रकृतिरूप परिणाम तेनुं निश्चयकर्म छे (अर्थात् निश्चयथी पुद्गल कर्ता छे अने शातावेदनीयादि खास प्रकृतिरूप परिणाम तेनुं कर्म छे).