Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 145.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
१९९
बहूनां कर्मणां निर्जरणं करोति तदत्र कर्मवीर्यशातनसमर्थो बहिरङ्गान्तरङ्गतपोभिर्बृंहितः
शुद्धोपयोगो भावनिर्जरा, तदनुभावनीरसीभूतानामेकदेशसंक्षयः समुपात्तकर्मपुद्गलानां
द्रव्यनिर्जरेति
।।१४४।।
जो संवरेण जुत्तो अप्पट्ठपसाधगो हि अप्पाणं
मुणिऊण झादि णियदं णाणं सो संधुणोदि कम्मरयं ।।१४५।।
यः संवरेण युक्त : आत्मार्थप्रसाधको ह्यात्मानम्
ज्ञात्वा ध्यायति नियतं ज्ञानं स संधुनोति कर्मरजः ।।१४५।।

करे छे. तेथी अहीं (आ गाथामां एम कह्युं के), कर्मना वीर्यनुं (कर्मनी शक्तिनुं) शातन करवामां समर्थ एवो जे बहिरंग अने अंतरंग तपो वडे वृद्धि पामेलो शुद्धोपयोग ते भावनिर्जरा छे अने तेना प्रभावथी (वृद्धि पामेला शुद्धोपयोगना निमित्तथी) नीरस थयेलां एवां उपार्जित कर्मपुद्गलोनो एकदेश संक्षय ते द्रव्यनिर्जरा छे. १४४.

संवर सहित, आत्मप्रयोजननो प्रसाधक आत्मने
जाणी, सुनिश्चळ ज्ञान ध्यावे, ते करमरज निर्जरे. १४५.
अन्वयार्थः[ संवरेण युक्तः ] संवरथी युक्त एवो [ यः ] जे जीव,
अंशने व्यवहार-तप कहेवामां आवे छे. (मिथ्याद्रष्टिने निश्चय-तप नथी तेथी तेना अनशनादि-

संबंधी शुभ भावोने व्यवहार-तपो पण कहेवाता नथी; कारण के ज्यां वास्तविक तपनो सद्भाव ज नथी, त्यां ते शुभ भावोमां आरोप कोनो करवो?) १. शातन करवुं = पातळुं करवुं; हीन करवुं; क्षीण करवुं; नष्ट करवुं. २. वृद्धि पामेलो = वधेलो; उग्र थयेलो. [संवर अने शुद्धोपयोगवाळा जीवने ज्यारे उग्र शुद्धोपयोग थाय

छे त्यारे घणां कर्मोनी निर्जरा थाय छे. शुद्धोपयोगनी उग्रता करवानी विधि शुद्धात्मद्रव्यना आलंबननी
उग्रता करवी ते ज छे. एम करनारने, सहजदशाए हठ विना जे अनशनादिसंबंधी भावो वर्ते तेमां
(
शुभपणारूप अंशनी साथे) उग्र-शुद्धिरूप अंश होय छे, जेथी घणां कर्मोनी निर्जरा थाय छे.
(मिथ्याद्रष्टिने तो शुद्धात्मद्रव्य भास्युं ज नथी, तेथी तेने संवर नथी, शुद्धोपयोग नथी, शुद्धोपयोगनी
वृद्धिनी तो वात ज क्यां रही? तेथी तेने, सहज दशा विनानाहठपूर्वकअनशनादिसंबंधी
शुभभावो कदाचित् भले होय तोपण, मोक्षना हेतुभूत निर्जरा बिलकुल होती नथी.]

३. संक्षय = सम्यक् प्रकारे क्षय.