Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 156.

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पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

संसारिणो हि जीवस्य ज्ञानदर्शनावस्थितत्वात् स्वभावनियतस्याप्यनादि- मोहनीयोदयानुवृत्तिपरत्वेनोपरक्तोपयोगस्य सतः समुपात्तभाववैश्वरूप्यत्वादनियतगुण- पर्यायत्वं परसमयः परचरितमिति यावत तस्यैवानादिमोहनीयोदयानुवृत्तिपरत्वम- पास्यात्यन्तशुद्धोपयोगस्य सतः समुपात्तभावैक्यरूप्यत्वान्नियतगुणपर्यायत्वं स्वसमयः स्वचरितमिति यावत अथ खलु यदि कथञ्चनोद्भिन्नसम्यग्ज्ञानज्योतिर्जीवः परसमयं व्युदस्य स्वसमयमुपादत्ते तदा कर्मबन्धादवश्यं भ्रश्यति यतो हि जीवस्वभावनियतं चरितं मोक्षमार्ग इति ।।१५५।।

जो परदव्वम्हि सुहं असुहं रागेण कुणदि जदि भावं
सो सगचरित्तभट्ठो परचरियचरो हवदि जीवो ।।१५६।।

संसारी जीव, (द्रव्य-अपेक्षाए) ज्ञानदर्शनमां अवस्थित होवाने लीधे स्वभावमां नियत (निश्चळपणे रहेलो) होवा छतां, ज्यारे अनादि मोहनीयना उदयने अनुसरीने परिणति करवाने लीधे उपरक्त उपयोगवाळो (अशुद्ध उपयोगवाळो) होय छे त्यारे (पोते) भावोनुं विश्वरूपपणुं (अनेकरूपपणुं) ग्रह्युं होवाने लीधे तेने जे अनियत- गुणपर्यायपणुं होय छे ते परसमय अर्थात् परचारित्र छे; ते ज (जीव) ज्यारे अनादि मोहनीयना उदयने अनुसरती परिणति करवी छोडीने अत्यंत शुद्ध उपयोगवाळो होय छे त्यारे (पोते) भावनुं एकरूपपणुं ग्रह्युं होवाने लीधे तेने जे नियतगुणपर्यायपणुं होय छे ते स्वसमय अर्थात् स्वचारित्र छे.

हवे, खरेखर जो कोई पण प्रकारे सम्यग्ज्ञानज्योति प्रगट करीने जीव परसमयने छोडी स्वसमयने ग्रहण करे छे तो कर्मबंधथी अवश्य छूटे छे; जेथी खरेखर (एम नक्की थाय छे के) जीवस्वभावमां नियत चारित्र ते मोक्षमार्ग छे. १५५.

जे रागथी परद्रव्यमां करतो शुभाशुभ भावने,
ते स्वकचरित्रथी भ्रष्ट, परचारित्र आचरनार छे. १५६.
१. उपरक्त = उपरागयुक्त. [कोई पदार्थमां थतो, अन्य उपाधिने अनुरूप विकार (अर्थात् अन्य उपाधि

जेमां निमित्तभूत होय छे एवी औपाधिक विकृतिमलिनताअशुद्धि) ते उपराग छे.] २. अनियत = अनिश्चित; अनेकरूप; विविध प्रकारना. ३. नियत = निश्चित; एकरूप; अमुक एक ज प्रकारना.