पंचास्तिकायसंग्रहनी संस्कृत टीकानुं घणुं ऊंडुं अवगाहन करी, आचार्यदेवना
हार्द सुधी पहोंची, पूर्वापर यथार्थ संबंध विचारी, अत्यंत सावधानी ने अति
परिश्रम पूर्वक आपे सांगोपांग सुंदर, सरळ अने पूरेपूरो भाववाही अनुवाद
गुर्जर गिरामां कर्यो, अने अध्यात्मजिज्ञासु समाजने अध्यात्मनिधाननी
अणमोल भेट आपी. आवी प्रवचनभक्तिवत्सलता अने अनुपम
अध्यात्मसाहित्यसेवा भारतना धार्मिक इतिहासमां चिरस्मरणीय रहेशे. ते
द्वारा जैनसाहित्यसृष्टिमां आपे सोनगढने उज्ज्वळ बनाव्युं छे. जैनशासननी
आवी महान सेवा माटे आपने अनेक कोटि धन्यवाद घटे छे.
समवसरण-स्तुति तथा अन्य केटलांक अध्यात्म काव्योनी पण आपे रचना करी
छे. शास्त्रना गंभीर अर्थो उकेलवानी विलक्षण कुशाग्रबुद्धि, शास्त्रोक्त सूक्ष्म
अध्यात्म विषयोने शब्द-भावगंभीरता जाळवीने, सरस अने सुग्राह्यपणे
अनुवादमां रजू करवानी विशिष्ट कळा, वांचतां ज अध्यात्म प्रत्ये रुचि जागृत
करे एवी अध्यात्मरसभरी लेखनशैली, काव्यमां पण अध्यात्म उतारवानी
खास शक्ति वगेरे विशेषताओ आपनी अध्यात्मरसिकता प्रसिद्ध करे छे.
तथा विशिष्ट क्षयोपशमवंत प्रतिभासंपन्न विद्वान छो. वळी आपे जैनशास्त्रोनुं
ऊंडुं चिंतन-मनन-अवधारण कर्युं छे. आम छतां आपनी आत्मज्ञान-