Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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पिपासा अत्यंत तीव्र छे, तेने माटे आपनो अविरत प्रयत्न छे. वैराग्य-
परायणतानी साथे आत्महितसाधना पण आप करी रह्या छो ते अत्यंत
प्रशंसनीय अने अनुकरणीय छे.
निस्पृह श्रुतभक्त !
महान परमागमोना अनुवादनुं जे शुभ कार्य आपना द्वारा थयुं छे
तेने अमो आपनुं महान सौभाग्य गणीए छीए. परमपूज्य सद्गुरुदेवना
आश्रय तळे आ गहन शास्त्रोनो अनुवाद आपे परमागम प्रत्येनी भक्तिथी
अने गुरुदेवनी प्रेरणाथी प्रेराईने, निज कल्याण अर्थे, भवभयथी डरतां डरतां
कर्यो छे. आवुं अजोड कार्य करवा छतां आपे कोई पण जातना बदलानी
आशा राखी नथी, एटलुं ज नहि पण अत्याग्रह करवा छतां कांई पण
बदलो स्वीकारवानी के अभिनंदनपत्र लेवानी पण आपे अनिच्छा ज दर्शावी
छे. तेथी अमारे आपनो उपकार मानीने ज संतोष करवो पडे छे. आपनी
श्रुतभक्ति निस्पृहताने लीधे विशेष शोभी ऊठे छे.
आपनी महान श्रुतभक्ति अने निस्पृहता, अध्यात्मरसिकता अने

मुमुक्षुता, वैराग्य अने विनयइत्यादि अनेक गुणोनी घणी ज प्रशंसापूर्वक अमो आपने हार्दिक अभिनंदन आपीए छीए ने श्री कुंदकुंदप्रभुनां आ ‘रत्नचतुष्टयना अनुवादना फळमां आपने ‘अनंत चतुष्टयनी प्राप्ति

थाओएवी श्रुतदेवता प्रत्ये प्रार्थना करीए छीए.
आपना गुणानुरागी
श्री दिगम्बर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट, तथा
श्री समस्त दि. जैन मुमुक्षुमंडळ वती
रामजी माणेकचंद दोशी
प्रमुख
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