प्रशममूर्ति भगवती पूज्य बहेनश्री चंपाबेनना वडील बंधु, प्रवचनसार परमागमना स्थायी प्रकाशन-पुरस्कर्ता पंडितरत्न श्री हिंमतभाइए—के जेमने भगवत्कुंदकुंदाचार्यप्रणीत परमागमोना गुजराती अनुवाद तथा तेना उपोद्घातथी व्यक्त थता तेमना अध्यात्मरसभीना ऊंडा आत्मार्थथी प्रभावित थइने परमकृपाळु पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीए अति प्रसन्नताथी ‘निकट मोक्षगामी’ तरीके बिरुदाव्या छे अने पूज्य बहेनश्रीना स्वानुभवविभूषित निर्मळ ज्ञानमां जेमना विषे ‘निकट भव्य’तानो तथा भूत, भविष्य अने वर्तमानना ‘विशिष्ट पुरुष’पणानो तथा जातिस्मरणज्ञानमां ‘जैनंद’ अथवा ‘जयंद’ नामना धार्मिक गुणोवाळा भाइ तरीके सम्यक् प्रतिभास अंतरथी आव्यो छे एवा आ पूर्वना संस्कारी, असाधारण व्यक्तित्वना धारक, ऊंडा आत्मार्थीए—निज आत्माना प्रयोजन अर्थे भगवत्कुंदकुंदाचार्यनां पंचपरमागमोनो—मूळ प्राकृत गाथाओनो गुजराती हरिगीत छंदमां तथा संस्कृत टीकाओनो गुजराती भाषामां—सीधो, सरळ अने भाववाही अनुवाद करीने समग्र मुमुक्षु समाज उपर महान महान उपकार कर्यो छे. ते अनुवादोनी शरुआत पहेलां तेमणे जे ‘उपोद्घात’ लख्या छे ते घणा ज तत्त्वगंभीर, अध्यात्मरसभरपूर, परमागमोना हार्दने स्पष्टपणे प्रकाशनार, ऊंडा अने आत्मार्थप्रेरक छे. तेमना जीवनमां परमागमो सहजपणे वणाइ गया होवाथी तेओ वारंवार कहे छे के—‘आत्मप्राप्तिनो पुरुषार्थ करवानो रस्तो प्राप्त करवो होय तो प्रवचनसार, समयसार आदि पंचपरमागमनो—मूळ शास्त्रनो —ऊंडाणथी अभ्यास करवो जोइए.’—ए एमनुं हृदय छे.
कुंदकुंदभारतीना पनोता पुत्र श्री हिंमतभाइ अध्यात्मरसिक, विद्वान अने ऊंडा आदर्श आत्मार्थी होवा उपरांत गंभीर, वैराग्यशाळी, शांत, ऊंडा तत्त्वचिंतक अने विवेकी सज्जन छे, तथा कवि पण छे. तेमणे पंचपरमागमोना गुजराती अनुवाद उपरांत पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनुं जीवनचरित्र, समयसार-स्तुति, सीमंधरजिन-स्तुति, जिनवाणी- स्तुति, समवसरण-स्तुति, सद्गुरुदेव-स्तुति, मानस्तंभ-स्तुति, पूज्य गुरुदेवश्री अने पूज्य बहेनश्री चंपाबेन विषे अध्यात्म तेम ज तत्त्वरसथी तरबोळ सुमधुर काव्यो वगेरे गद्यपद्यात्मक अनेक रचनाओ करी छे. आवां अनेक अध्यात्मरसपूर्ण काव्यो रचवानी