कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
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चरति, स खलु स्वकं चरितं चरति । एवं हि शुद्धद्रव्याश्रितमभिन्नसाध्यसाधनभावं निश्चय-
नयमाश्रित्य मोक्षमार्गप्ररूपणम् । यत्तु पूर्वमुद्दिष्टं तत्स्वपरप्रत्ययपर्यायाश्रितं भिन्नसाध्य-
साधनभावं व्यवहारनयमाश्रित्य प्ररूपितम् । न चैतद्विप्रतिषिद्धं निश्चयव्यवहारयोः साध्यसाधन-
भावत्वात्सुवर्णसुवर्णपाषाणवत् । अत एवोभयनयायत्ता पारमेश्वरी तीर्थप्रवर्तनेति ।।१५९।।
नयना आश्रये मोक्षमार्गनुं प्ररूपण करवामां आव्युं. अने जे पूर्वे (१०७ मी गाथामां)
दर्शाववामां आव्युं हतुं ते १स्वपरहेतुक पर्यायने आश्रित, २भिन्नसाध्यसाधनभाववाळा
व्यवहारनयना आश्रये ( – व्यवहारनयनी अपेक्षाए) प्ररूपवामां आव्युं हतुं. आमां
परस्पर विरोध आवे छे एम पण नथी, कारण के सुवर्ण अने ३सुवर्णपाषाणनी माफक
निश्चय-व्यवहारने साध्य-साधनपणुं छे; तेथी ज पारमेश्वरी ( – जिनभगवाननी) ४तीर्थ-
प्रवर्तना ५बंने नयोने आधीन छे. १५९.
जेम के, निर्विकल्पध्यानपरिणत ( – शुद्धात्मश्रद्धानज्ञानचारित्रपरिणत) मुनिने निश्चयनयथी मोक्षमार्ग
छे कारण के त्यां (मोक्षरूप) साध्य अने (मोक्षमार्गरूप) साधन एक प्रकारनां अर्थात्
शुद्धात्मरूप ( – शुद्धात्मपर्यायरूप) छे.
१. जे पर्यायोमां स्व तेम ज पर कारण होय छे अर्थात् उपादानकारण तेम ज निमित्तकारण होय
छे ते पर्यायो स्वपरहेतुक पर्यायो छे; जेम के, छठ्ठा गुणस्थाने (द्रव्यार्थिकनयना विषयभूत शुद्धात्म-
स्वरूपना आंशिक आलंबन सहित) वर्ततां तत्त्वार्थश्रद्धान (नवपदार्थगत श्रद्धान), तत्त्वार्थज्ञान
(नवपदार्थगत ज्ञान) अने पंचमहाव्रतादिरूप चारित्र — ए बधा स्वपरहेतुक पर्यायो छे. तेओ अहीं
व्यवहारनयना विषयभूत छे.
२. जे नयमां साध्य तथा साधन भिन्न होय ( – जुदां प्ररूपवामां आवे) ते अहीं व्यवहारनय छे;
जेम के, छठ्ठा गुणस्थाने (द्रव्यार्थिकनयना विषयभूत शुद्धात्मस्वरूपना आंशिक आलंबन सहित)
वर्ततां तत्त्वार्थश्रद्धान (नवपदार्थसंबंधी श्रद्धान), तत्त्वार्थज्ञान अने पंचमहाव्रतादिरूप चारित्र
व्यवहारनयथी मोक्षमार्ग छे कारण के (मोक्षरूप) साध्य स्वहेतुक पर्याय छे अने (तत्त्वार्थश्रद्धानादिमय
मोक्षमार्गरूप) साधन स्वपरहेतुक पर्याय छे.
३. जे पाषाणमां सुवर्ण होय तेने सुवर्णपाषाण कहेवामां आवे छे. जेम व्यवहारनयथी सुवर्णपाषाण
सुवर्णनुं साधन छे, तेम व्यवहारनयथी व्यवहारमोक्षमार्ग निश्चयमोक्षमार्गनुं साधन छे; एटले के व्यवहारनयथी भावलिंगी मुनिने सविकल्प दशामां वर्ततां तत्त्वार्थश्रद्धान, तत्त्वार्थज्ञान अने महाव्रतादिरूप चारित्र निर्विकल्प दशामां वर्ततां शुद्धात्मश्रद्धानज्ञानानुष्ठाननां साधन छे. ४. तीर्थ = मार्ग (अर्थात् मोक्षमार्ग); उपाय (अर्थात् मोक्षनो उपाय); उपदेश; शासन.
५. जिनभगवानना उपदेशमां बे नयो द्वारा निरूपण होय छे. त्यां, निश्चयनय द्वारा तो सत्यार्थ निरूपण
करवामां आवे छे अने व्यवहारनय द्वारा अभूतार्थ उपचरित निरूपण करवामां आवे छे.
प्रश्नः — सत्यार्थ निरूपण ज करवुं जोईए; अभूतार्थ उपचरित निरूपण शा माटे करवामां
आवे छे?