अन्वयार्थः — [ धर्मादिश्रद्धानं सम्यक्त्वम् ] धर्मास्तिकायादिनुं श्रद्धान ते सम्यक्त्व, [ अङ्गपूर्वगतम् ज्ञानम् ] अंगपूर्वसंबंधी ज्ञान ते ज्ञान अने [ तपसि चेष्टा चर्या ] तपमां चेष्टा ( – प्रवृत्ति) ते चारित्र; — [ इति ] ए प्रमाणे [ व्यवहारः मोक्षमार्गः ] व्यवहारमोक्षमार्ग छे.
उत्तरः — जेने सिंहनुं यथार्थ स्वरूप सीधुं समजातुं न होय तेने सिंहना स्वरूपना उपचरित निरूपण द्वारा अर्थात् बिलाडीना स्वरूपना निरूपण द्वारा सिंहना यथार्थ स्वरूपना ख्याल तरफ दोरी जवामां आवे छे, तेम जेने वस्तुनुं यथार्थ स्वरूप सीधुं समजातुं न होय तेने वस्तुस्वरूपना उपचरित निरूपण द्वारा वस्तुस्वरूपना यथार्थ ख्याल तरफ दोरी जवामां आवे छे. वळी लांबा कथनने बदले संक्षिप्त कथन करवा माटे पण व्यवहारनय द्वारा उपचरित निरूपण करवामां आवे छे. अहीं एटलुं लक्षमां राखवायोग्य छे के — जे पुरुष बिलाडीना निरूपणने ज सिंहनुं निरूपण मानी बिलाडीने ज सिंह समजी बेसे ते तो उपदेशने ज योग्य नथी, तेम जे पुरुष उपचरित निरूपणने ज सत्यार्थ निरूपण मानी वस्तुस्वरूपने खोटी रीते समजी बेसे ते तो उपदेशने ज योग्य नथी.
गुणस्थानयोग्य निर्विकल्प शुद्ध परिणतिनुं साधन छे’. हवे, ‘छठ्ठा गुणस्थाने केवी अथवा केटली शुद्धि होय छे’ — ए वातनो पण साथे साथे ख्याल कराववो होय तो, विस्तारथी एम निरूपण कराय के ‘जे शुद्धिना सद्भावमां, तेनी साथे साथे महाव्रतादिना शुभ विकल्पो हठ विना सहजपणे वर्तता होय छे ते छठ्ठा गुणस्थानयोग्य शुद्धि सातमा गुणस्थानयोग्य निर्विकल्प शुद्ध परिणतिनुं साधन छे’. आवा लांबा कथनने बदले, एम कहेवामां आवे के ‘छठ्ठा गुणस्थाने वर्तता महाव्रतादिना शुभ विकल्पो सातमा गुणस्थानयोग्य निर्विकल्प शुद्ध परिणतिनुं साधन छे’, तो ए उपचरित निरूपण छे. आवा उपचरित निरूपणमांथी एम अर्थ तारववो जोईए के ‘महाव्रतादिना शुभ विकल्पो नहि पण तेमना द्वारा सूचववा धारेली छठ्ठा गुणस्थानयोग्य शुद्धि खरेखर सातमा गुणस्थानयोग्य निर्विकल्प शुद्ध परिणतिनुं साधन छे’.