Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 226 of 256
PDF/HTML Page 266 of 296

 

पंचास्तिकायसंग्रह
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

ज्ञानचारित्रैः स्वभावभूतैः सममङ्गाङ्गिभावपरिणत्या तत्समाहितो भूत्वा त्यागोपादान- विकल्पशून्यत्वाद्विश्रान्तभावव्यापारः सुनिष्प्रकम्पः अयमात्मावतिष्ठते, तस्मिन् तावति काले अयमेवात्मा जीवस्वभावनियतचरितत्वान्निश्चयेन मोक्षमार्ग इत्युच्यते अतो निश्चय- व्यवहारमोक्षमार्गयोः साध्यसाधनभावो नितरामुपपन्न इति ।।१६१।।


वडे तेमनाथी समाहित थईने, त्यागग्रहणना विकल्पथी शून्यपणाने लीधे (भेदात्मक) भावरूप व्यापार विराम पामवाथी (अर्थात् भेदभावरूपखंडभावरूप व्यापार अटकी जवाथी) सुनिष्कंपपणे रहे छे, ते काळे अने तेटला काळ सुधी आ ज आत्मा जीवस्वभावमां नियत चारित्ररूप होवाने लीधे निश्चयथी ‘मोक्षमार्ग’ कहेवाय छे. आथी, निश्चयमोक्षमार्ग अने व्यवहारमोक्षमार्गने साध्य-साधनपणुं अत्यंत घटे छे.

भावार्थःनिश्चयमोक्षमार्ग निज शुद्धात्मानी रुचि, ज्ञप्ति अने निश्चळ अनुभूतिरूप छे. तेनो साधक (अर्थात् निश्चयमोक्षमार्गनुं व्यवहारसाधन) एवो जे भेदरत्नत्रयात्मक व्यवहारमोक्षमार्ग तेने जीव कथंचित् (कोई प्रकारे, निज उद्यमथी) पोताना संवेदनमां आवती अविद्यानी वासनाना विलय द्वारा पाम्यो थको, ज्यारे गुणस्थानरूप सोपानना क्रम प्रमाणे निजशुद्धात्मद्रव्यनी भावनाथी उत्पन्न नित्यानंद- लक्षणवाळा सुखामृतना रसास्वादनी तृप्तिरूप परम कळाना अनुभवने लीधे निज- शुद्धात्माश्रित निश्चयदर्शनज्ञानचारित्ररूपे अभेदपणे परिणमे छे, त्यारे निश्चयनयथी भिन्न साध्य-साधनना अभावने लीधे आ आत्मा ज मोक्षमार्ग छे. माटे एम ठर्युं के सुवर्ण अने सुवर्णपाषाणनी माफक निश्चयमोक्षमार्ग अने व्यवहारमोक्षमार्गने साध्य-साधकपणुं (

व्यवहारनयथी) अत्यंत घटे छे. १६१.
वळी, ‘निश्चयमोक्षमार्ग अने व्यवहारमोक्षमार्गने साध्य-साधनपणुं अत्यंत घटे छे’ एम जे कहेवामां
आव्युं छे ते व्यवहारनय द्वारा करवामां आवेलुं उपचरित निरूपण छे. तेमांथी एम अर्थ तारववो
जोईए के ‘छठ्ठा गुणस्थाने वर्तता शुभ विकल्पोने नहि पण छठ्ठा गुणस्थाने वर्तता शुद्धिना अंशने
अने सातमा गुणस्थानयोग्य निश्चयमोक्षमार्गने खरेखर साधन-साध्यपणुं छे’. छठ्ठा गुणस्थाने वर्ततो
शुद्धिनो अंश वधीने ज्यारे अने जेटला काळ सुधी उग्र शुद्धिने लीधे शुभ विकल्पोनो अभाव
वर्ते छे त्यारे अने तेटला काळ सुधी सातमा गुणस्थानयोग्य निश्चयमोक्षमार्ग होय छे.

२२

१. तेमनाथी = स्वभावभूत सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रथी
२. अहीं ए ख्यालमां राखवायोग्य छे के जीव व्यवहारमोक्षमार्गने पण अनादि अविद्यानो नाश करीने
ज पामी शके छे; अनादि अविद्याना नाश पहेलां तो (अर्थात् निश्चयनयनाद्रव्यार्थिकनयना विषयभूत शुद्धात्मस्वरूपनुं भान कर्या पहेलां तो) व्यवहारमोक्षमार्ग पण होतो नथी.