Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 162.

< Previous Page   Next Page >


Page 227 of 256
PDF/HTML Page 267 of 296

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
२२७

जो चरदि णादि पेच्छदि अप्पाणं अप्पणा अणण्णमयं

सो चारित्तं णाणं दंसणमिदि णिच्छिदो होदि ।।१६२।।
यश्चरति जानाति पश्यति आत्मानमात्मनानन्यमयम्
स चारित्रं ज्ञानं दर्शनमिति निश्चितो भवति ।।१६२।।

आत्मनश्चारित्रज्ञानदर्शनत्वद्योतनमेतत

यः खल्वात्मानमात्ममयत्वादनन्यमयमात्मना चरतिस्वभावनियतास्तित्वेनानुवर्तते, आत्मना जानातिस्वपरप्रकाशकत्वेन चेतयते, आत्मना पश्यतियाथातथ्येनावलोकयते, स खल्वात्मैव चारित्रं ज्ञानं दर्शनमिति कर्तृकर्मकरणानामभेदान्निश्चितो भवति

जाणे, जुए ने आचरे निज आत्मने आत्मा वडे,
ते जीव दर्शन, ज्ञान ने चारित्र छे निश्चितपणे. १६२.

अन्वयार्थः[ यः ] जे (आत्मा) [ अनन्यमयम् आत्मानम् ] अनन्यमय आत्माने [ आत्मना ] आत्माथी [ चरति ] आचरे छे, [ जानाति ] जाणे छे, [ पश्यति ] देखे छे, [ सः ] ते (आत्मा ज) [ चारित्रं ] चारित्र छे, [ ज्ञानं ] ज्ञान छे, [ दर्शनम् ] दर्शन छे[ इति ] एम [ निश्चितः भवति ] निश्चित छे.

टीकाःआ, आत्माना चारित्र-ज्ञान-दर्शनपणानुं प्रकाशन छे (अर्थात् आत्मा ज चारित्र, ज्ञान अने दर्शन छे एम अहीं समजाव्युं छे).

जे (आत्मा) खरेखर आत्मानेके जे आत्ममय होवाथी अनन्यमय छे तेने आत्माथी आचरे छे अर्थातस्वभावनियत अस्तित्व वडे अनुवर्ते छे (स्वभावनियत अस्तित्वरूपे परिणमीने अनुसरे छे), (अनन्यमय आत्माने ज) आत्माथी जाणे छे अर्थात स्वपरप्रकाशकपणे चेते छे, (अनन्यमय आत्माने ज) आत्माथी देखे छे अर्थात् यथातथपणे अवलोके छे, ते आत्मा ज खरेखर चारित्र छे, ज्ञान छे, दर्शन छेएम कर्ता-कर्म-करणना

१. स्वभावनियत = स्वभावमां अवस्थित; (ज्ञानदर्शनरूप) स्वभावमां द्रढपणे रहेल. [‘स्वभावनियत अस्तित्व’नी विशेष स्पष्टता माटे १५४मी गाथानी टीका जुओ.]

२. ज्यारे आत्मा आत्माने आत्माथी आचरे-जाणे-देखे छे, त्यारे कर्ता पण आत्मा, कर्म पण आत्मा अने करण पण आत्मा छे; ए रीते त्यां कर्ता-कर्म-करणनुं अभिन्नपणुं छे.