Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 164.

< Previous Page   Next Page >


Page 229 of 256
PDF/HTML Page 269 of 296

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
२२९

स्वभावः तयोर्विषयप्रतिबन्धः प्रातिकूल्यम् मोक्षे खल्वात्मनः सर्वं विजानतः पश्यतश्च तदभावः ततस्तद्धेतुकस्यानाकुलत्वलक्षणस्य परमार्थसुखस्य मोक्षेऽनुभूति- रचलिताऽस्ति इत्येतद्भव्य एव भावतो विजानाति, ततः स एव मोक्षमार्गार्हः नैतदभव्यः श्रद्धत्ते, ततः स मोक्षमार्गानर्ह एवेति अतः कतिपये एव संसारिणो मोक्षमार्गार्हा, न सर्व एवेति ।।१६३।। दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गो त्ति सेविदव्वाणि

साधूहि इदं भणिदं तेहिं दु बंधो व मोक्खो वा ।।१६४।।
दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग इति सेवितव्यानि
साधुभिरिदं भणितं तैस्तु बन्धो वा मोक्षो वा ।।१६४।।

छे. मोक्षमां खरेखर आत्मा सर्वने जाणतो अने देखतो होवाथी तेनो अभाव होय छे (अर्थात् मोक्षमां स्वभावनी प्रतिकूळतानो अभाव होय छे). तेथी तेनो अभाव जेनुं कारण छे एवा अनाकुळतालक्षणवाळा परमार्थसुखनी मोक्षमां अचलित अनुभूति होय छे. आ प्रमाणे भव्य जीव ज भावथी जाणे छे, तेथी ते ज मोक्षमार्गने योग्य छे; अभव्य जीव ए प्रमाणे श्रद्धतो नथी, तेथी ते मोक्षमार्गने अयोग्य ज छे.

आथी (एम कह्युं के) केटलाक ज संसारीओ मोक्षमार्गने योग्य छे, बधाय नहि. १६३.

द्रग, ज्ञान ने चारित्र छे शिवमार्ग तेथी सेववां

संते कह्युं, पण हेतु छे ए बंधना वा मोक्षना. १६४.

अन्वयार्थः[ दर्शनज्ञानचारित्राणि ] दर्शन-ज्ञान-चारित्र [ मोक्षमार्गः ] मोक्षमार्ग छे [ इति ] तेथी [ सेवितव्यानि ] तेओ सेववायोग्य छे[ इदम् साधुभिः भणितम् ] एम साधुओए

१. पारमार्थिक सुखनुं कारण स्वभावनी प्रतिकूळतानो अभाव छे.
२. पारमार्थिक सुखनुं लक्षण अथवा स्वरूप अनाकुळता छे.
३. श्री जयसेनाचार्यदेवकृत टीकामां कह्युं छे के ‘ते अनंत सुखने भव्य जीव जाणे छे, उपादेयपणे
श्रद्धे छे अने पोतपोताना गुणस्थान अनुसार अनुभवे छे.’