न पुनरन्यथा । व्यवहारनयेन भिन्नसाध्यसाधनभावमवलम्ब्यानादिभेदवासितबुद्धयः सुखेनैवावतरन्ति तीर्थं प्राथमिकाः । तथाहि — इदं श्रद्धेयमिदमश्रद्धेयमयं श्रद्धातेदं श्रद्धानमिदं ज्ञेयमिदमज्ञेयमयं ज्ञातेदं ज्ञानमिदं चरणीयमिदमचरणीयमयं चरितेदं चरणमिति कर्तव्याकर्तव्यकर्तृकर्मविभागावलोकनोल्लसितपेशलोत्साहाः शनैःशनैर्मोह- मल्लमुन्मूलयन्तः, कदाचिदज्ञानान्मदप्रमादतन्त्रतया शिथिलितात्माधिकारस्यात्मनो बीजी रीते थती नथी). (उपरोक्त वात विशेष समजाववामां आवे छेः — )
अनादि काळथी भेदवासित बुद्धि होवाने लीधे प्राथमिक जीवो व्यवहारनये १भिन्नसाध्यसाधनभावने अवलंबीने २सुखे करीने तीर्थनी शरूआत करे छे (अर्थात् सुगमपणे मोक्षमार्गनी प्रारंभभूमिकाने सेवे छे). जेम केः ‘(१) आ श्रद्धेय (श्रद्धवायोग्य) छे, (२) आ अश्रद्धेय छे, (३) आ श्रद्धनार छे अने (४) आ श्रद्धान छे; (१) आ ज्ञेय (जाणवायोग्य) छे, (२) आ अज्ञेय छे, (३) आ ज्ञाता छे अने (४) आ ज्ञान छे; (१) आ आचरणीय (आचरवायोग्य) छे, (२) आ अनाचरणीय छे, (३) आ आचरनार छे अने (४) आ आचरण छे;’ — एम (१) कर्तव्य (करवायोग्य), (२) अकर्तव्य, (३) कर्ता अने (४) कर्मरूप विभागोना अवलोकन वडे जेमने कोमळ ( – मंद) उत्साह उल्लसित थाय छे एवा तेओ (प्राथमिक जीवो) धीमे धीमे मोहमल्लने (रागादिने) उखेडता जाय छे; कदाचित् अज्ञानने लीधे ( – स्वसंवेदनज्ञानना अभावने लीधे) मद (कषाय) अने प्रमादने वश थवाथी पोतानो आत्म-अधिकार (आत्माने विषे अधिकार) शिथिल थई जतां पोताने न्यायमार्गमां प्रवर्ताववा माटे तेओ प्रचंड दंडनीतिनो प्रयोग करे छे; फरी फरीने (पोताना आत्माने) दोषानुसार प्रायश्चित्त देता थका तेओ सतत
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१. मोक्षमार्गप्राप्त ज्ञानी जीवोने प्राथमिक भूमिकामां, साध्य तो परिपूर्ण शुद्धताए परिणत आत्मा
छे अने तेनुं साधन व्यवहारनये (आंशिक शुद्धिनी साथे साथे रहेल) भेदरत्नत्रयरूप परावलंबी
विकल्पो कहेवामां आवे छे. आ रीते ते जीवोने व्यवहारनये साध्य अने साधन भिन्न प्रकारनां
कहेवामां आव्या छे. (निश्चयनये साध्य अने साधन अभिन्न होय छे.)
२. सुखे करीने = सुगमपणे; सहजपणे; कठिनता विना. [जेमणे द्रव्यार्थिकनयना विषयभूत
शुद्धात्मस्वरूपनां श्रद्धानादि करेल छे एवा सम्यग्ज्ञानी जीवोने तीर्थसेवननी प्राथमिक दशामां
( – मोक्षमार्गसेवननी प्रारंभिक भूमिकामां) आंशिक शुद्धिनी साथे साथे श्रद्धानज्ञानचारित्र संबंधी
परावलंबी विकल्पो (भेदरत्नत्रय) होय छे, कारण के अनादि काळथी जीवोने जे भेदवासनाथी
वासित परिणति चाली आवे छे तेनो तुरत ज सर्वथा नाश थवो कठिन छे.]