Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
नवपदार्थपूर्वक मोक्षमार्गप्रपंचवर्णन
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वारंवारमभिवर्धितोत्साहा; ज्ञानाचरणाय स्वाध्यायकालमवलोकयन्तो, बहुधा विनयं प्रपञ्चयन्तः, प्रविहितदुर्धरोपधानाः, सुष्ठु बहुमानमातन्वन्तो, निह्नवापत्तिं नितरां निवारयन्तोऽर्थव्यञ्जनतदुभयशुद्धौ नितान्तसावधानाः; चारित्राचरणाय हिंसानृतस्तेया- ब्रह्मपरिग्रहसमस्तविरतिरूपेषु पञ्चमहाव्रतेषु तन्निष्ठवृत्तयः, सम्यग्योगनिग्रहलक्षणासु गुप्तिषु नितान्तं गृहीतोद्योगा, ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गरूपासु समितिष्वत्यन्त- निवेशितप्रयत्नाः; तपआचरणायानशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्त- शय्यासनकायक्लेशेष्वभीक्ष्णमुत्सहमानाः, प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यव्युत्सर्गस्वाध्यायध्यान- परिकराङ्कुशितस्वान्ता; वीर्याचरणाय कर्मकाण्डे सर्वशक्त्या व्याप्रियमाणाः; कर्म- चेतनाप्रधानत्वाद्दूरनिवारिताऽशुभकर्मप्रवृत्तयोऽपि समुपात्तशुभकर्मप्रवृत्तयः, सकल- क्रियाकाण्डाडम्बरोत्तीर्णदर्शनज्ञानचारित्रैक्यपरिणतिरूपां ज्ञानचेतनां मनागप्यसम्भावयन्तः,


प्रभावनाने भावता थका वारंवार उत्साहने वधारे छे; ज्ञानाचरण माटेस्वाध्यायकाळने अवलोके छे, बहु प्रकारे विनयने विस्तारे छे, दुर्धर उपधान करे छे, सारी रीते बहुमानने प्रसारे छे, निह्नवदोषने अत्यंत निवारे छे, अर्थ, व्यंजन अने तदुभयनी शुद्धिमां अत्यंत सावधान रहे छे; चारित्राचरण माटेहिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्म अने परिग्रहनी सर्वविरतिरूप पंचमहाव्रतोमां तल्लीन वृत्तिवाळा रहे छे, सम्यक् योगनिग्रह जेनुं लक्षण छे (योगनो बराबर निरोध करवो ते जेनुं लक्षण छे) एवी गुप्तिओमां अत्यंत उद्योग राखे छे, ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेप अने उत्सर्गरूप समितिओमां प्रयत्नने अत्यंत जोडे छे; तपाचरण माटेअनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन अने कायक्लेशमां सतत उत्साहित रहे छे, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, व्युत्सर्ग, स्वाध्याय अने ध्यानरूप परिकर वडे निज अंतःकरणने अंकुशित राखे छे; वीर्याचरण माटेकर्मकांडमां सर्व शक्ति वडे व्यापृत रहे छे; आम करता थका, कर्मचेतनाप्रधानपणाने लीधेजोके अशुभकर्मप्रवृत्तिने तेमणे अत्यंत निवारी छे तोपणशुभकर्मप्रवृत्तिने जेमणे बराबर ग्रहण करी छे एवा तेओ, सकळ क्रियाकांडना आडंबरथी पार ऊतरेली दर्शनज्ञानचारित्रनी ऐक्यपरिणतिरूप ज्ञानचेतनाने जरा पण नहि उत्पन्न करता थका, पुष्कळ पुण्यना

१. तदुभय = ते बंने (अर्थात् अर्थ तेम ज व्यंजन बंने)

२. परिकर = समूह; सामग्री.
३. व्यापृत = रोकायेल; गूंथायेल; मशगूल; मग्न.