जीवास्तिकायादि सात तत्त्व, नव पदार्थ, छ द्रव्य अने पांच अस्तिकायनुं संशय-विमोह- विभ्रम रहित निरूपण करती होवाथी अथवा पूर्वापरविरोधादि दोष रहित होवाथी अथवा युगपद् सर्व जीवोने पोतपोतानी भाषामां स्पष्ट अर्थनुं प्रतिपादन करती होवाथी विशद-स्पष्ट-व्यक्त छे. आ रीते जिनभगवाननी वाणी ज प्रमाणभूत छे; एकांते अपौरुषेय वचन के विचित्र कथारूप कल्पित पुराणवचनो प्रमाणभूत नथी. (३) त्रीजुं, अनंत द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावने जाणनारो अनंत केवळज्ञानगुण जिनभगवंतोने वर्ते छे. आ रीते बुद्धि आदि सात ॠद्धि तेम ज मतिज्ञानादि चतुर्विध ज्ञानथी संपन्न गणधरदेवादि योगींद्रोने पण तेओ वंद्य छे. (४) चोथुं, पांच प्रकारना संसारने जिनभगवंतोए जीत्यो छे. आ रीते कृतकृत्यपणाने लीधे तेओ ज बीजा अकृतकृत्य जीवोनुं शरण छे, अन्य कोई नहि. — आ प्रमाणे चार विशेषणोथी युक्त जिनभगवंतोने ग्रंथना आदिमां भाव- नमस्कार करीने मंगळ कर्युं.
प्रश्नः — जे शास्त्र पोते ज मंगळ छे, तेनुं मंगळ शा माटे करवामां आवे छे?
उत्तरः — भक्ति अर्थे मंगळनुं पण *मंगळ करवामां आवे छे. सूर्यने दीपकथी, महासागरने जळथी, वागीश्वरीने (सरस्वतीने) वाणीथी अने मंगळने मंगळथी अर्चवामां आवे छे. १.
* आ गाथानी श्री जयसेनाचार्यदेवकृत टीकामां, शास्त्रनुं मंगळ, शास्त्रनुं निमित्त, शास्त्रनो हेतु (फळ), शास्त्रनुं परिमाण, शास्त्रनुं नाम अने शास्त्रना कर्ता — ए छ बाबतोनुं विस्तृत विवेचन कर्युं छे.
वळी श्री जयसेनाचार्यदेवे आ गाथाना शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ अने भावार्थ समजावीने, ‘ए रीते व्याख्यानकाळे सर्वत्र शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ अने भावार्थ योजवायोग्य छे’ एम कह्युं छे.
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