Panchastikay Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन
श्रमणमुखोद्गतार्थं चतुर्गतिनिवारणं सनिर्वाणम्
एष प्रणम्य शिरसा समयमिमं शृणुत वक्ष्यामि ।।।।

समयो ह्यागमः तस्य प्रणामपूर्वकमात्मनाभिधानमत्र प्रतिज्ञातम् युज्यते हि स प्रणन्तुमभिधातुं चाप्तोपदिष्टत्वे सति सफलत्वात तत्राप्तोपदिष्टत्वमस्य श्रमणमुखोद्- गतार्थत्वात श्रमणा हि महाश्रमणाः सर्वज्ञवीतरागाः अर्थः पुनरनेकशब्दसम्बन्धे- नाभिधीयमानो वस्तुतयैकोऽभिधेयः सफलत्वं तु चतसृणां नारकतिर्यग्मनुष्यदेवत्वलक्षणानां गतीनां निवारणत्वात् पारतंत्र्यनिवृत्तिलक्षणस्य निर्वाणस्य शुद्धात्मतत्त्वोपलम्भरूपस्य परम्परया कारणत्वात् स्वातंत्र्यप्राप्तिलक्षणस्य च फलस्य सद्भावादिति ।।।।

अन्वयार्थः[श्रमणमुखोद्गतार्थं] श्रमणना मुखमांथी नीकळेल अर्थमय (सर्वज्ञ महामुनिना मुखथी कहेवायेला पदार्थोने कहेनार), [चतुर्गतिनिवारणं] चार गतिनुं निवारण करनार अने [सनिर्वाणम्] निर्वाण सहित (-निर्वाणना कारणभूत) [इमं समयं] एवा आ समयने [शिरसा प्रणम्य] शिरसा प्रणमीने [एष वक्ष्यामि] हुं तेनुं कथन करुं छुं; [शृणुत] ते श्रवण करो.

टीकासमय एटले आगम; तेने प्रणाम करीने पोते तेनुं कथन करशे एम अहीं (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवे) प्रतिज्ञा करी छे. ते (समय) प्रणाम करवाने अने कथन करवाने योग्य छे, कारण के ते *आप्त वडे उपदिष्ट होवाथी सफळ छे. त्यां, तेनुं आप्त वडे उपदिष्टपणुं एटला माटे छे के जेथी ते ‘श्रमणना मुखमांथी नीकळेल अर्थमय’ छे. ‘श्रमणो’ एटले महाश्रमणोसर्वज्ञवीतरागदेवो; अने ‘अर्थ’ एटले अनेक शब्दोना संबंधथी कहेवामां आवतो, वस्तुपणे एक एवो पदार्थ. वळी तेनुं (-समयनुं) सफळपणुं एटला माटे छे के जेथी ते समय (१) ‘नारकत्व, तिर्यंचत्व, मनुष्यत्व अने देवत्वस्वरूप चार गतिओनुं निवारण’ करवाने लीधे अने (२) शुद्धात्मतत्त्वनी उपलब्धिरूप ‘निर्वाणनुं परंपराए कारण होवाने लीधे (१) परतंत्रतानिवृत्ति जेनुं लक्षण छे अने (२) स्वतंत्रताप्राप्ति जेनुं

*आप्त = विश्वासपात्र; प्रमाणभूत; यथार्थ वक्ता. [सर्वज्ञदेव समस्त विश्वने प्रत्येक समये संपूर्णपणे जाणी रह्या छे अने तेओ वीतराग (मोहरागद्वेषरहित) होवाथी तेमने असत्य कहेवानुं लेशमात्र प्रयोजन रह्युं नथी; तेथी वीतराग-सर्वज्ञदेव खरेखर आप्त छे. आवा आप्त वडे आगम
उपदेशवामां आव्युं होवाथी ते (
आगम) सफळ छे.]